Wednesday, 22 January 2014

हिन्दी साहित्य के विभिन्न काल खण्डों का वर्गीकरण

  Anonymous       Wednesday, 22 January 2014

हिन्दी साहित्य के विभिन्न काल खण्डों का वर्गीकरण 
1. आदिकाल - 
वीरगाथा काल - शुक्ल 
आदिकाल - हजारी प्रसाद द्विवेदी 
चारण काल - जार्ज ग्रियर्सन 
संधि एवं चारण काल - डाॅ. रामकुमार वर्मा 
आरम्भिक काल - मिश्र बंधु 
बीजवपन काल - महावीर प्रसाद द्विवेदी 
सिद्धसामन्त काल - राहुल साकृं त्यायन 
प्रारम्भिक काल - गणपति चन्द्र गुप्त 
पुरानी हिन्दी काल - चन्द्रधर शर्मा (गुलेरी) 
अपभ्रंष काल - धीरेन्द्र वर्मा 


2. रीतिकाल - 
अलंकृत काल - मिश्र बंधु 
कला काल - डाॅ. रामषंकर शुक्ल (रसाल) 
श्रृंगार काल - डाॅ. विष्वनाथ प्रसाद मिश्र 
हजारी प्रसाद द्विवेदी 
रीतिकाल - शुक्ल 
आधुनिक काल - 
गद्यकाल - शुक्ल 
वर्तमान काल - मिश्र बंधु 
आधुनिक काल - डाॅ. रामकुमार वर्मा, गणपति चन्द्र गुप्त 
हिन्दी का प्रथम कवि - 
स्वयभ्ं ा ू - डाॅ. रामकुमार वर्मा  
सरहया - राहुल साकृं त्यायन 
राजा मुंज - ‘गुलेरी’ शुक्ल 
शलिभ्रद सूरि - गणपति चन्द्र गुप्त 
हिन्दी की प्रथम रचना - 
ण् डाॅ. गणपति चन्द्र गुप्त ने शलिभ्रद सूरि कृत ‘‘भरतेष्वर बाहुबलिरास’’ 
(1184 ई.) को हिन्दी की प्रथम रचना माना है। 
- सर्वमान्य मत के अनुसार जनै आचार्य ‘देवसने ’ कृत श्रापकाचार’ को 
हिन्दी की प्रथम रचना माना गया ह ै (93र्3 इ. ) 
सर्वमान्य काल विभाजन - 
आदिकाल - 1000-135र्0 इ. 
भक्तिकाल - 1350-165र्0 इ. 
रीतिकाल - 1650-185र्0 इ. 
आधुनिक - 1850-आगे 
आदिकालीन साहित्य की प्रमुख प्रवृŸिाया या विषेषताएं - 
- ऐतिहासिकता का अभाव 
- युद्ध वर्णन में सजीवता 
- अप्रमाणिकता 
- वीर एवं श्रृंगार रस की प्रधानता 
- आश्रयदाता की प्रषंसा 
- संकुचित राष्ट्रीयता 
- कल्पना की प्रचुरता 
- डिंगल-पिंगल भाषा का प्रयोग 
- विविध छंदों का प्रयोग 
आदिकाल की प्रमुख रचनाएं व उनके रचनाकार - 
रासो काव्य - वीर रस से सम्बन्धित 
- चन्दरवरदाई - पृथ्वीराज रासा े 
- नगरपतिनालह - वीसलदेव रासा े 
- जगानिक - परमाल रासा े 
- शाडग्ंधर (सारंगधर) - हम्मीर रासा े 
- भट्टकेदार - जयचन्द्र प्रकाष 
- मधुकर कवि - जयमयंक जसचन्द्रिका 
रास काव्य - श्रृंगार रस से सम्बन्धित (फागुन शैली में लिखित) 
- देवसेन - श्रावकाचार (933 ई.) 
- शालिभद्रसूरि - भारतेष्वर बाहुबलि रास (बुद्धिरास) 
- आसगु (जालौर का) - चन्दन बाला रस/जीवदया रास 
- जिनभद्रसूरि - स्थूलिभद्ररास 
- विजय सेन सूरि - रेवंत गिरिदास 
- सुभति गुण - नेमीनाथ रास 
अपभ्रंष साहित्य - लोकभाषा साहित्य भी कहते हैं 
- अब्दुल रहमान - संदेष रासक 
- स्वयभ ूं - पउमचरिउ (रामकथा) 
रिट्टणोमिचरिउ (कृष्णकथा) 
- पुष्पदंत - महापुराण, जसहरचरिउ 
- धनपाल - भविष्त्कहा (रामेटिकि महाकाव्य) 
- जिनिदत सूरि - उपदेष रसायन रास 
- जोइन्दु - प्रमात्म प्रकाष, योगसार 
- रामसिंह - पाहुड़दोहा 
- मेरूतंग - प्रबंध चिंतामणि 
आदिकाल का अन्य साहित्य - 
- ढोला मारू रा दुहा - कवि कल्लोल (कुषललाभ संपादक) 
- वसन्त विलास - केषवलाल हर्षदराय ध्रुव (संपादक) 
- विद्यापति (अभिनव जयदेव) - कीर्तिलता, कीर्तिपताका अपभ्रंष भाषा 
(12वीं-13वीं शताब्दी के कवि) (अवह्टठ भाषा) 
- अमीर खुसरो - पहेलियां, मुकुरियां, दो सुखने 
- निजामुद्दीन ओलिया गुरू - खाली कबारी (शब्दकोष) 
(हिन्द-ए-तोता) नुरसिपहर (भारतीय बोलियांे का वर्णन) 
आदिकाल का गद्य साहित्य - 
कवि रचना 
- रोडा - राउपेल (हिन्दी का प्रथम चम्पु काव्य) 
नखाषिष वर्णन की शुरूआत - षिला कवि 
- दामोदर शर्मा - उक्ति व्यक्ति प्रकरण (व्याकरण ग्रन्थ) 
- ज्योतिष्वर ठाकुर- वर्णरत्नाकर (मैथिली) 
- उद्योतन सूरि - कुवलयमाला 
महत्वूपर्ण तथ्य - 
-
सिद्धों की संख्या 84 मानी गई है - कण्हपा, सवरपा, लुइपा 
- नाथों की संख्या 9 मानी गई है - प्रवर्तक गोरखनाथ 
- अमीर खुसरो का जन्म एटे ा जिले (उ.प्र.) के पटियाली गांव में हुआ 
(1255 ई.) 
- इन्हें खड़ी बोली हिन्दी का प्रथम कवि माना जात है। 
- भाषा के रूप में हिन्दी शब्द का प्रथम बार प्रयोग करने वाले प्रथम 
व्यक्ति 
- तबला व सितार का अविष्कारक - अमीर खुसरा े 
- गुरू - हजरत निजामुद्दिन औलिया 
- विद्यापति एक श्रृंगारी कवि थे जो मिथिला के राजा षिवसिंह के 
दरबारी कवि थे। 
- विद्यापति को मैथिल कोकिल, अभिनव जयदेव, कवि शेखर उपनाम 
दिए गए 
- रासो शब्द की व्युत्पति ‘रासक’ शब्द से हुई है जो की एक छन्द है 
(गेय छन्द) 
-
- आचार्य शुक्ल ने पृथ्वीराज रासो को हिन्दी में प्रथम महाकाव्य तथा 
चन्दरबरदाई को प्रथम महाकवि कहा है। 
- ‘‘रामनेरष त्रिपाठी’’ कृत कविता कौमुदी में ‘भारतेन्दु हरिषचन्द्र के 
पूर्व तक के 89 कवियों की रचनाओं का वर्णन है। 
- आचार्य शुक्ल का काल विभाजन का प्रमुख आधार ‘जनता की 
चितवृति’ के परिवर्तन को बताया 
- राजस्थानी साहित्य की रूपरेखा के लेखक ‘‘मोतीलाल मेनारिया’’ है। 
- डाॅ. माता प्रसाद गुप्त की रचना ‘‘हिन्दी पुस्तक साहित्य’’ को 
आधुनिक साहित्य का बीजक कहा जाता है। 
- डाॅ. नगेन्द्र ने भारतेन्दु काल में पुर्नजागरण काल तथा द्विवेदी काल 
को जागरण सुधार काल का नाम दिया 
- गोरखनाथ ने हठयोग (साधनात्मक रहस्यवाद) का प्रवर्तन करते हुए 
नाथ सम्प्रदाय चलाया। 
- सिद्धों और नाथों ने ‘‘संध्याभाषा शैली’’ का प्रयोग किया। 
- सिद्धों की वाममार्गी साधना पद्धति के विरोध स्वरूप नाथ पंथ का 
उदय 
- डाॅ. बूलर ने सर्वप्रथम ‘‘पृथ्वीराज रासो’’ को विवादास्पद घोषित 
किया। 
- भाषा के रूप में हिन्दी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग अमीर खुसरो ने 
किया। 
‘‘भक्तिकाल’’ (पूर्व मध्यकाल) 
समयसीमा - आचार्य शुक्ल के अनुसार 1375 विक्रम संवत से 
1700 वि.स. नगेन्द्र के अनुसार 135र्0 इ. स.े 1605 
ई. (सर्वमान्य) 
आचार्य शुक्ल ने भक्ति भावना को पराजित मनोवृŸिा की उपज माना 
- ग्रियर्सन ने भक्तिभाव को ईसाई धर्म से प्रभावित माना। 
- आचार्य हरिप्रसाद द्विवेदी ने चली आ रही परम्परा का विकास माना 
- हिन्दी साहित्य में भक्ति आंदोलन का प्रारम्भ दक्षिणी भारत के 
आलवार/आलावार भक्तों की परम्परा से हुआ। 
- तमिल मे ं वष्ै णव भक्ता ंे को आलवार कहा जाता ह।ै 
- आलवारों के द्वारा लिये पदों का संकलन ‘‘दिव्य प्रबन्धम्’’ नाम से 
किया गया है। 
- आलवारों की संख्या 12 थी। 
- तमिल भाषा में शैव भक्तों को नायनवार कहा जाता है। 
- आचार्य शुक्ल ने भक्तिकाल का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया है- 
भक्ति काल 
निगुण (ज्ञानाश्रयी) सगुण (प्रेयाश्रयी) 
संतकाव्य सूफी काव्य रामकाव्य कृष्णकाव्य 
कबीर जायसी तुलसीदास सूरदास 
कबीर की भक्ति 
प्रमुख आचार्य एवं सिद्धान्त (सम्प्रदाय) - 
1. अद्वैतवाद - शंकराचार्य 
2. विषिष्टाद्वैतवाद - रामानुजाचार्य 
3. द्वैतवाद (ब्रह्मवाद) - मध्वाचार्य 
4. द्वैताद्वैतवाद - निम्बकाचार्य 
5. शुद्धादतै वाद - विष्णु स्वामी/वल्लभाचार्य  
6. सखी/हरीदासी सम्प्रदाय- हरिदास 
7. राधावल्लभी सम्प्रदाय - हितहरिवंष 
8. रामावत सम्प्रदाय - रामानन्द 
9. श्री सम्प्रदाय - रामानुजाचार्य 
संत काव्य की प्रमुख प्रवृŸिायां - 
- निर्गुण निराकार ब्रह्म की उपासना। 
- गुरू की महŸाा। 
- ज्ञान की महŸाा। 
- रहस्यात्मकता-साधनात्मक एवं भावनात्मक रहस्यवाद 
- बाहरी आडम्बरों का विरोध 
- मानवतावादी दृष्टिकोण 
- नारी विषयक दृष्टिकोण 
- जाति प्रथा के विरूद्ध 
- संसार की असारता का निरूपण 
- उल्टवांसी शैली का प्रयोग 
- अपरिष्कृत भाषा - आचार्य शुक्ल ने इसे सधुकड़ी या पंचमेल 
खिचड़ी भाषा में कहा ह ै 
- भाव पक्ष की प्रधानता 
प्रमुख संत एवं उनकी रचनाएं - 
1. कबीर - (1398) 
- बीजक नाम से इनकी रचनाओं का संकलन इनके षिष्य धर्मदास 
द्वारा किया गया। बीजक के तीन भाग ह ै - 1. साखी 2. सबद 3.़ 
रमैनी 
- श्यामसुन्दर दास ने इनकी रचनाओं का संकलन ‘कबीर ग्रन्थावली’ में 
किया। 
- ये भक्त एवं कवि बाद में थे समाजसुधारक पहले थे। 
- कबीर ने गुरू की महिमा, हठयोग साधना एवं कुण्डलिनीयोग नाथों 
से ग्रहण किया है। 
- कबीर की उल्टवासियों पर सिद्धों का प्रभाव 
- कबीर की भाषा को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने सधुक्कड़ी या पंचमेल 
खिचड़ी कहा है। 
- हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को ‘‘वाणी का डिक्टेटर’’ कहा है। 
- सबद और रमैनी की भाषा ब्रज है। 
- ये रामानन्द के 12 शिष्यों में प्रमुख थे। 
2. गुरूनानक देव - 
- ये सिख सम्प्रदाय के प्रवर्तक थे। 
- इनका जन्म तलवण्डी (नन्दगाना साहिब) में 1469 को हुआ। 
- प्रमुख रचनाएं - जपुजी, असादीबार, रहिराज, सोहिला, भैट, 
नसीहतनामा (खड़ी बोली में) 
3. हरिदास निरन्जनी - 
- ये निरन्जनी सम्प्रदाय के थे जो नाथ पंथ और संतकाव्य के बीच की 
कड़ी माना जाता है। 
- प्रमुख रचनाएं - अष्टपदी, ब्रह्मस्तूति, हंष प्रबोध, संग्रामजोग, समाधि 
जोग 
4. दादू दयाल (1544 ई.) - 
- इन्होंने ‘‘दादूपंथ’’ का प्रवर्तन किया जो ‘‘परब्रह्म सम्प्रदाय’’ भी 
कहलाता है। 
- इनकी रचनाओं का संकलन ‘‘हरेड़वाणी’’ नाम से इनके षिष्य 
संतदास एवं जगन्ननाथदास ने किया। 
- अन्य रचनाएं - अनभैपाणी, कायावेली, अंगबधू(रज्जबजी) 
- अंगबधु का संकलन रज्जब ने किया 
- इनकी भाषा ब्रज है 
5. मलूकदास - 
- प्रमुख रचनाएं - ज्ञानबोध, रतनखान, भक्तिविवेक, सुख-सागर, 
बारहखड़ी, ध्रुवचरित्र। 
- आलसियों का महामंत्र - 
अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम। 
दास मलूका कह गए, सबके दाता राम।। 
- इनकी भाषा ब्रज एवं अवधी ह ै
6. सुन्दरदास - 
- ये दादूदयाल के षिष्य थे। 
- ये सबसे प्रतिभाषाली एवं षिक्षित कवि थे। 
- इनके ग्रंथों में ‘‘ज्ञान समुद्र’’ एवं ‘‘सुन्दर विलास’’ प्रसिद्ध है। 
- ‘‘सुन्दर ग्रन्थावली’’र का सम्पादन कार्य हरिनारायण शर्मा ने किया। 
- ये श्रृंगार रस के परम विरोधी थे। 
- इन्होंने केषव की ‘‘रसिकप्रिया’’ एवं नन्ददास ‘‘रसमंजरि’’ की निंदा 
की है। 
- इन्होंनें छंदों एवं अलकांरां का शुद्ध प्रयोग किया। 
- इनकी भाषा ब्रज है। 
7. रैदास - (रविदास) 
- ये रामानन्द के षिष्य थे तथा जाति स े चमार थे। 
- ये मीरा के गुरू भी माने जाते हैं। 
- इनकी रचनाएं ‘‘रविदास की वाणी’’ षिर्षक से प्रकाषित है। 
- इनकी भाषा ब्रज है। 
8. अर्जुनदेव - 
- ये ‘‘गुरू ग्रंथ साहिब’’ के सम्पादक थे। 
- रचनाएं - सूखमणी, बावनभक्षरी। 
संतकाव्य से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथ्य - 
- नामदेव ने कबीर से पहले संतकाव्य की स्थापना की थी। ये 
महाराष्ट्र पण्डरपुर जिले के संत थे। 
- निर्गुण पंथ के प्रवर्तक कबीर ही माने जाते हैं। 
- संत काव्य में साधनात्मक रहस्यवाद अधिक मिलता है। 
- भक्ति में एक वर्ग विषेष का एकाधिकार की समाप्ति का प्रयास 
‘‘रामानुजाचार्य’’ ने किया। 
- भक्ति के क्षेत्र में जाति-पाति के भेदभावों को ‘‘रामानन्द’’ ने समाप्त 
किया। 
- भक्ति की शुरूआत दक्षिण भारत से हुई। शंकराचार्य के द्वारा। 
- उŸार-भारत में भक्ति भावना का प्रसार ‘‘रामानन्द’’ ने किया। 
- संत काव्य का प्रधान रस शांत है। 
- रामानन्दी सम्प्रदाय की प्रधान मीठ ‘‘गलताजी’’ जयपुर में है। 
जिसकी स्थापना ‘‘कृष्णदास पयहारी’’ ने की। 
- गलताजी को ‘‘उŸार तोताद्री’’ कहा जाता है। 
- शंकराचार्य ने भारत में चार मठों की स्थापना की। 
1. ज्योर्तिमठ (बद्रीनाथ, उŸाराखण्ड) 
2. गोवर्धनमठ (उड़ीसा) 
3. श्रंगेरी मठ (मैसुर, कर्नाटक) 
4. शारदा मठ (द्वारका, गुजरात) 
सूफी काव्य धारा - 
इस काव्य धारा को प्रेममार्गी/प्रेमाश्रयी/प्रेमाख्यानक/रोमांसीक 
कथा काव्य आदि नामों से जाना जाता है। 
- सूफी काव्य में उपलब्ध प्रेम भावना भारतीय प्रेम से कुछ अलग है। 
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इन रचनाओं पर फारसी मसनवी शैली का 
प्रभाव बताया है। 
- मसनवी शैली के अन्तर्गत सर्वप्रथम ईषवंदना, हजरत मोहम्मद की 
स्तूति, तात्कालीन शासक की प्रषंसा तथा गुरू की महिमा का 
निरूपण है। 
- इस प्रकार के प्रेम का चित्रण भारतीय संस्कृति में ऊर्वषी, पुरूखा 
आख्यान, नल-दमयन्ती आख्यान, ऊषा-अनिरूद्ध, राधा-कृष्ण आदि 
रूपों में मिलता है। 
- सूफी शब्द-‘‘सूफ’’ से बना है जिसका अर्थ है ‘‘पवित्र’’। सूफी लोग 
सफेद ऊन के बने चोगे पहनते थे। उनका आचरण पवित्र एवं शुद्ध 
होता था। 
- सूफियों ने ईष्कमिजाजी (लौकिक प्रेम) के माध्यम से इष्क इकीकी 
(अलौकिक प्रेम) को प्राप्त करने पर बल दिया। 
- भारत म ें इस मत का आगमन नवीं-दसवीं शताब्दी में हो गया था। 
लेकिन इसके प्रचार-प्रसार का श्रेय ‘‘ख्वाजा मोइनुद्दिन चिष्ती’’ को 
है। 
- सूफी साधान में ईष्वर की कल्पना पत्नी रूप में तथा साधक की 
कल्पना पति रूप में की गई है। 
ण् गणपति चन्द्रगुप्त ने सूफी काव्य को ‘‘रोमांटिक कथा काव्य’’ कहा 
है। 
ण् इस धारा के प्रतिनिधि कवि ‘‘जायसी’’ है। 
ण् इनकी प्रमुख रचना ‘‘पघमावत’’ ह।ै (154र्0 इ. ) 
ण् सूफी काव्य धारा के अधिंकाष कवि मुसलमान है लेकिन इनमें 
धार्मिक कट्टरता का अभाव है। 
ण् इन कवियों ने सूफी मत के प्रचार-प्रसार के लिए हिन्दू घरों में 
प्रचलित प्रेम-कहानियों को अपना काव्य विषय बनाया। 
ण् हिन्दी के प्रथम सूफी कवि ‘‘मुल्लादाऊद’’ को माना जाता है। 
ण् आचार्य शुक्ल ने हिन्दी का प्रथम सूफी कवि ‘‘कुतुबन’’ को माना है। 
ण् रामकुमार वर्मा ने मुल्लादाऊद कर ‘‘चन्दायन’’ (लोरकहा) से सूफी 
काव्य की परम्परा की शुरूआत माा है। 
ण् सूफियों में ‘‘राबिया’’ नाम की एक कवियित्री भी हुई। 
ण् ‘‘अष्टछाप’’ के कवि नन्ददास ने ‘‘रूपमंज्जरी’’ नाम से प्रेमकथा की 
रचना की। जिसकी भाषा ब्रज है। 
सूफी काव्य की प्रमुख प्रवृŸिायां एवं विषेषताएं - 
ण् मुसलमान कवि और मसनवी शैली 
ण् प्रेमगाथाओं का नामकरण नायिकाओं के आधार पर 
ण् अलौकिक प्रेम की व्यंजना 
ण् कथा संगठन एवं कथानक रूढि़यों का काव्य में प्रयोग 
ण् नायक-नायिका चरित्र चित्रण में एक जैसी पद्धति 
ण् लोक पक्ष एवं हिन्दु संस्कृति का चित्रण 
ण् श्रृंगार रस की प्रधानता 
ण् किसी सम्प्रदाय के खण्डन-मण्डन का अभाव 
ण् अवधी भाषा का प्रयोग तथा क्षेत्रीय बोलियां े का भी प्रभाव 
प्रमुख रचनाएं एवं रचनाकार - 
1. मुल्लादाऊद - 
ण् चन्दायन (लोरकहा) (137र्2 इ. ) 
ण् यह अवधि भाषा का प्रथम सम्बन्ध काव्य है। 
ण् कडवड शैली का प्रयोग (पांच अर्द्धालियों के बाद एक दोहा) 
2. कुतुबन - (मृगावती) 
ण् आचार्य शुक्ल ने इसे सूफी काव्य परम्परा का प्रथम ग्रन्थ माना है। 
3. मंझन - (मधुमालती) 
ण् इसमें नायक के एकानिष्ठ प्रेम का चित्रण किया गया है। 
4. जायसी - (पद्मावत) 1540 ई. 
ण् चिŸाौड़ के राजा रत्नसेन एवं सिंहलद्विप की राजकुमारी पद्मावती 
की कथा का चित्रण 
ण् यह एक रूपक काव्य ह ै 
इसके पात्र प्रतीक है - 
चिŸाौड़ - शरीर का 
रत्नसेन - मन का 
पद्मावती - सात्विक बुद्धि 
सिंहलद्विप - हृदय का 
हीरामन तोता - गुरू का 
राघव चेतन - शैतान का 
नागमती - संसार का 
अलाउद्दीन - माया रूप आसुरी शक्ति 
जायसी की अन्य रचनांए:- 
अखरापट - वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर को लेकर सिद्धान्त निरूपण 
आखरी कलाम - कयामत का वर्णन 
चित्र रेखा, कहरनामा, मसलनामा 
5. असाइत - 
हंसावली (राजस्थानी भाषा में) मोतीलाल मेनारिया के अनुसार 
6. दामोदर कवि - ‘‘लखनसेन पद्मावती कथा’’ (राजस्थानी) 
7. ईष्वरदास - ‘‘सत्यवती कथा’’ 
8. नन्ददास - ‘‘रूपमंजरी’’ (ब्रजभाषा में) 
9. उसमान - ‘‘चित्रावली’’ 
10. शेखनवी - ‘‘ज्ञानदीप’’ 
11. कासीमषाह - ‘‘हंस जवाहिर’’ 
12. नुरमोहम्मद - अनुराग बांसुर, इन्द्रावती 
अनुराग बांसुरी में दोहे के स्थान पर बरवै का प्रयोग 
13. जान कवि - ‘‘कथारूप मंजरी’’ 
14. पुहकर कवि - ‘‘रसरतन’’ 
आचार्य शुक्ल ने रतनसेन को आत्मा तथा पद्मावती को परमात्मा का 
प्रतीक माना है। 
जायसी के गुरू का नाम - सैय्यद अषरफ, शेख मोहिदी 
‘‘कृष्णकाव्य धारा’’ 
ण् 
कृष्णकाव्य धारा के प्रतिनिधि कवि सूरदास माने जाते हैं। 
ण् आधुनिक भारतीय भाषाओं (हिन्दी) में सर्वप्रथम ‘‘विद्यापति’’ ने राधा 
कृष्ण का चित्रण किया। 
ण् विद्यापति पदावली के पद इतने मधुर और भावपूर्ण हैं कि चैतन्य 
महाप्रभु उन्हें गाते-गाते भावविभोर होकर मुर्छित हो जाते थे। 
ण् कृष्ण भक्ति काव्य आनन्द और उल्लास का काव्य है। (लोकरंजक) 
ण् कृष्ण काव्य के आधार ग्रन्थ ‘‘भागवत पुराण’’ और महाभारत माने 
जाते हैं। 
ण् हिन्दी में कृष्ण काव्य के प्रवर्तन का श्रेय विद्यापति को ही है। 
ण् ‘‘भ्रमर गीत’’ का मूल स्त्रोत श्रीमतभागवत पुराण के दषम् सकन्द 
के 46वें व 47वें अध्याय को माना जाता है। 
ण् बृज भाषा में भ्रमरगीत परम्परा सूरदास से प्रारम्भ हुई। 
ण् विद्यापति ने ‘‘जयदेव’’ के ‘‘गीतगोविन्द’’ का अनुसरण किया। 
ण् पुष्टिमार्ग का सम्बन्ध वल्लभाचार्य से है जिसमे पुष्टि का अर्थ है - 
पोषण। अर्थात भागवत कृपा या अनुग्रह। 
ण् पुष्टिमार्ग के वे कवि जिन पर विठ्ठलनाथ ने अपने आषीर्वाद की 
छापलगाई ‘‘अष्टसखा’’ या ‘‘अष्टछाप’’ के नाम से जाने गए। 
ण् इनमें से चार वल्लभाचार्य एवं चार विठ्ठलनाथ के षिष्य थे। 
वल्लभाचार्य के षिष्य विठ्ठलनाथ के षिष्य 
1. सूरदास 1. नन्ददास 
2. कूम्भनदास 2. गोविन्द स्वामी 
3. परमानन्ददास 3. छीत स्वामी 
4. कृष्णदास 4. चतुर्भुजदास 
ण् अष्टछाप के कवि गोवर्धन में श्रीनाथ मन्दिर में अष्ट भाग विधि से 
सेवा करते थे। 
ण् अष्टछाप की स्थापना 1565 ई. में विठ्ठलदास द्वारा की गई। 
ण् विद्यापति ने ‘जयदेव’ के ‘गीत-गोविन्द’ का अनुसरण किया 
‘‘विद्यापति-पदावली’’ 
ण् नन्ददास अष्टछाप के कवियों में सबसे विद्वान कवि थे। 
84 वैष्णव की वार्ता - 
ण् उनमें वल्लभाचार्य के षिष्यों का वर्णन है। 
ण् वैष्णवन की वार्ता में विठ्ठलदास के षिष्यों का वर्णन है। 
ण् भ्रमरगीत का मूल स्त्रोत श्रीमद्भागवत पुराण है। 
ण् वल्लभाचार्य कृत अनुभाष्य में पुष्टि मार्ग की व्याख्या है। 
ण् पुष्टिमार्गीय भक्ति को रागानुगा भक्ति कहते हैं। 
ण् अष्टछाप की स्थापना विठ्ठलदास के द्वारा 
ण् गोवर्धन पर्वत पर 1519 ई. में श्रीनाथ मन्दिर की स्थापना पूर्णमल 
खत्री के द्वारा की गई। 
कृष्ण भक्ति सम्बन्धी सम्प्रदाय - 
1. वल्लभ सम्प्रदाय - 
ण् प्रवर्तक वल्लभाचार्य 
ण् इनका दार्षनिक सिद्धान्त शुद्धाद्वैत है। 
ण् इनके अनुसार श्री कृष्ण पूर्ण पुरूषोŸाम ब्रह्म है। 
ण् विष्णु सम्प्रदाय को पुनर्गठित कर वल्लभाचार्य ने वल्लभ सम्प्रदाय का 
रूप दिया। 
ण् भागवत टीका, सुबोधिनी, अणुभाष्य इनकी प्रमुख रचनाएं है। 
2. निम्बार्क सम्प्रदाय - 
ण् निम्बकाचार्य ने सम्पादित किया। 
ण् राधा-कृष्ण की युगल-मूर्ति की पूजा। 
ण् द्वेताद्वैतवाद या (भेद-अभेदवाद) दार्षनिक सिद्धान्त 
3. राधावल्लभ सम्प्रदाय - 
ण् प्रवर्तक हितहरिवंष 
ण् इसमें राधा को ही प्रमुख माना गया है और कृष्ण को ईष्वरों का 
ईष्वर माना गया है। 
4. गोडिय सम्प्रदाय - 
ण् चैतन्य सम्प्रदाय (प्रर्वतक-चैतन्य महाप्रभु) 
ण् कृष्ण को बृजेष के रूप में माना है। 
प्रमुख कवि - 
1. सूरदास - अंजन नयन, पुष्टिमार्ग 
ण् वात्सल्य का सम्राट कहते हैं। ये जन्मान्ध थे। 
ण् वार्ताग्रन्थों के अनुसार ये दिल्ली के निकट सही ग्राम के ब्राह्मण 
परिवार में पैदा हुए। 
ण् वल्लभाचार्य से मिलने के बाद दास्य-विनय भक्ति छोड़कर 
साख्यभक्ति को अपनाया और उनके साथ पारसौली में रहने लगे। 
ण् विठ्ठलदास ने इनके निधन पर कहा ‘‘पुष्टिमार्ग का जहाज जात है, 
सो जाको कुछ लैनो होय सो लेहु’’ 
ण् सूर सागर की कथा भागवत पुराण के दषम स्कन्ध से ली गई है। 
ण् आचार्य शुक्ल ने तुलसी और सूरदास को हिन्दी काव्य गगन के सूर्य 
और चन्द्र माना है - (सूर-सूर्य, शषि-तुलसी) 
ण् आचार्य शुक्ल ने सूरदास को जीवनोत्सव का कवि माना है। 
ण् सूर को वातस्लय और श्रृंगार रस का सम्राट कहा जाता है। 
ण् आचार्य शुक्ल ने कहा कि आगे होने वाले कवियों की श्रृंगार एवं 
वातस्लय की उक्तियां सूर की जूठन सी लगती है। 
ण् सूर सागर का सर्वाधिक मर्मस्पर्षी अंष भ्रमणगीत है जिसमें उद्धव व 
कृष्ण को भ्रमर द्वारा उलाहना देना निगणर््ु ा पर सगुण की विजय 
ण् सूरसागर की रचना 12 स्कन्धों में की है। 
ण् 9वां स्कन्ध में रामावतार की कथा है बाकी कृष्ण की 
प्रमुख रचनाएं - 
ण् सूरसागर, सूर सूरावली, साहित्य लहरी (नायिका भेद) 
ण् सूरदास की भक्ति पद्धति का मेरूदण्ड पुष्टिमार्ग है। 
ण् सूरसागर-गीतिकाव्य है। इसकी भाषा ब्रज है। 
ण् सूरदास की अकबर से मुलाकात हुई थी। 
2. नन्ददास - 
ण् ये बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न कवि थे। 
ण् इनके विषय में जानकारी 252 वैष्णव की वार्ता में मिलती है। 
ण् ये विठ्ठलदास के शिष्य थे। 
प्रमुख रचनांए - 
रासपंचाध्यायी - रोला छंद में लिखित नन्ददास की सर्वश्रेष्ठ कृति है। 
इस ग्रंथ की उत्कृष्ट शैली एंव काव्यत्व को देखकर नन्ददास के बारे में 
यह कहा जाता है - ‘‘और कवि गडि़या नन्ददास जडि़या’’ 
इस ग्रंथ को हिन्दी का गीतगोविन्द कहा जाता है। 

िसद्धान्त पंचाध्यायी - रासलीला की आध्यात्मिक व्याख्या 
भ्
ा्रंवरगीत - 
अनेकार्थ मंजरी 
मानमंजरी 
रूपमंजरी - प्रेमाख्यानक परम्परा का ग्रंथ 
विरह मंजरी - 
रूकमणी मंगल 
सुदामा चरित 
प्रेम बारहखड़ी 
गोवर्धनलीला 
3. कृष्णदास - 
ण् ये अधिकारी के नाम से जाने जाते है। 
ण् इनकी रचनाएं निम्न है - पे्रेमत्व निरूपण, जुगलमानचित्र 
ण् ये श्रीनाथ मन्दिर में लेखा-जोखा का कार्य करते थे। 
4. स्वामी हरिदास - 
ण् रचनाएं - के लिमाल 
5. कुंभनदास - 
ण् ‘‘संतन को कहां सिकरी को काम’’ ये पंक्ति इन्होंने अकबर के 
दरबार से लौटकर कही थी। 
स्
वछंद काव्यधारा के कवि - 
1. रसखान (सैय्यद इब्राहीम) - 
ण् इन्हें स्वंछद काव्यधारा का प्रर्वतक माना जाता है। 
ण् दौ सो बावन वैष्णवन की वार्ता में इनका उल्लेख मिलता है। 
ण् इन्होंने गोस्वामी विठ्ठलनाथ से षिक्षा ली। 
ण् तुलसीदास ने अपना ‘‘रामचरितमानस’’ सर्वप्रथम रसखान को ही 
सुनाया था। 
ण् कृष्णभक्ति के लिए कवित सवैया पद्धति को अपनाने वाले प्रथम कवि 
थे। 
प्रमुख रचनाएं - 
सुजान रसखान - इस रचना से रसखान की उपाधि 
प्रेमवाटिका - इसमें राधा-कृष्ण को मालिक और माली के रूप में 
चित्रित किया है। 
दानलीला - राधा-कृष्ण का संवाद 
अष्टयाम - कृष्ण की दिनचर्या एवं क्रिड़ाओं का वर्णन 
2. मीरा - 
ण् जन्म 150र्4 इ. मेडत़ ा के समीप गावं कुडक़ ी मे ं राठाडै ़ वंषी परिवार 
में। 
ण् इनके पिता का नाम रत्नसिंह 
ण् पति का नाम - भोजराज (चिŸाौड़ का शासक) 
ण् राव दूदा के पास मेड़ता में बचपन बीता एंव वैष्णव भक्ति संस्कार 
प्राप्त किए। 
ण् वृंदावन में कृष्णभक्त जीव गोस्वामी से इनकी भेंट हुई 
ण् द्वारिका के रणछोड़ जी मंदिर में इनका अंतिम समय बीता 
ण् इनके काव्य में राजस्थानी मिश्रित बृजभाषा का प्रयोग है। 
ण् इनकी भक्ति माधुर्यभाव की भक्ति मानी जाती है। 
3. रहीम - 
प्रमुख रचनाएं - 
बरवैनायिका भेद 
नगरशोभा 
श्रृंगार सोरठा 
मदनाष्टक - कृष्णलीला 
खेल कोतुकम - ज्योतिष संबंधी 
भ्रमरगीत परम्परा - 
1. सूरदास का ‘भ्रमरगीत’ - 
ण् भागवत के दसवें स्कंध पर आधारित 
ण् इनकी गोपीयां अधिक भावुक है। 
2. नन्ददास का भंवरगीत - 
ण् इनकी गोपियां अधिक तार्किक है। 
ण् इसमें दार्षनिकता का पुट मिलता है। 
भ्रमरदूत - 
ण् सत्यनारायण कवि रत्न 
ण् युगीन समस्याओं का चित्रण 
ण् माता यषोदा का चित्रण भारत माता के रूप में किया 
ण् राष्ट्रीयता एवं स्त्री षिक्षा का उल्लेख 

िप्रय प्रवास - अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘‘हरिऔध’’ 
उद्धवषतक - जगन्नाथ दास रत्नाकर 
रामभक्ति काव्य - 
जैन साहित्य में ‘‘विमलसूरि’’ कृत ‘‘पउम चरिउ’’ 
सिद्ध साहित्य में स्वयंभू कृत ‘‘पउम चरिउ’’ तथा पुष्पदंत कृत 
‘‘महापुराण’’ में रामकथा का वर्णन है। 
ण् बांग्लाभाषा में ‘‘कृतिवासी’’ ने ‘‘रामायण’’ लिखी। 
ण् तुलसी से पूर्व के रामभक्त कवियों में विष्णुदास ईष्वरदास 
(भरतमिलाप, अंगदपैज) आदि प्रमुख है। 
ण् वाल्मिकी की रामायण ही रामकथा का मूलस्त्रोत है। 
रामभक्ति से सम्बन्धित सम्प्रदाय - 
1. श्री सम्प्रदाय - (रामानुजाचार्य) 
ण् इन्हें शेषनाग अथवा लक्ष्मण का अवतार माना जाता है। 
2. ब्रह्म सम्प्रदाय - (मध्वाचार्य) 
ण् इनका सिद्धांत द्वैतवाद था 
ामभक्ति काव्य के प्रमुख कवि - 
(प्) रामानन्द - 
ण् मूलरूप में रामभक्ति काव्यधारा का प्रारम्भ रामानन्द से माना जाता 
है। 
ण् ये रामावत सम्प्रदाय क े प्रवर्तक थे। 
ण् इनके गुरू का नाम राघवानन्द था। 
ण् इन्होंने रामभक्ति को जनसाधारण के लिए सुगम बनाया। 
ण् सगुण और निर्गुण का समन्वय ‘‘रामावत सम्प्रदाय’’ की उदार दृष्टि 
का परिणाम है। 
ण् रचनाएं - रामार्चन पद्धति, वैष्णवमताब्ज भास्कर, हनुमानजी की 
आरती (आरती कीजे हनुमान लला की), रामरक्षास्त्रोत 
ण् रामानन्द सम्प्रदाय की प्रधान पीठ गलताजी जयपुर में ‘‘कृष्णदास 
पयहारी’’ ने स्थापित की। 
ण् इसे ‘‘उŸार तोताद्री’’ कहा जाता है। 
ण् इसी सम्प्रदाय की एक शाखा तपसी शाखा है। 
ण् गुरूग्रंथ साहिब में दनके दोहपद मिले हैं। 
ण् हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इन्हें ‘‘आकाष धर्मगरू’’ कहा है। 
(प्प्) अग्रदास - 
ण् ये कृष्ण पयहारी के षिष्य थे ओर नाभादास के गुरू थे। 
ण् रामकाव्य परम्परा में रसिक भावना का समावेष इन्होंने ही किया। 
ण् ये स्वयं को ‘‘ अग्रकली’’ (जानकी की सखी) मानकर काव्य रचना 
की 
ण् प्रमुख रचनाएं - ध्यान मंजरी, अष्टयाम, रामभजन मंजरी, उपासना 
बावनी, हितोपदेष भाषा 
(प्प्प्) तुलसीदास - 
ण् जन्म 153र्2 इ. 
ण् रामभक्ति धारा के सबसे बड़े एंव प्रतिनिधि कवि। 
ण् रामभक्त कवियों की संख्या अपेक्षाकृत कम होने के कारण 
तुलसीदास का बरगदमयी व्यक्तित्व है। 
ण् ‘‘तुलसीदास का सम्पूर्ण काव्य समन्वय की विराट चेष्टा है।’’ 
-हजारी प्रसाद द्विवेदी। 
ण् नाभादास ने इन्हें ‘‘काली काल का वाल्मिकी’’ कहा है। 
ण् ग्रिर्यसन ने इन्हें ‘‘लोकनायक’’ कहा। 
ण् इन्हें जातिय कवि भी कहा जाता है। 
ण् अमृतलाल नागर के उपन्यास ‘‘मानस का हंस’’ में तुलसी का वर्णन 
है। 
ण् आचार्य शुक्ल ने तुलसी का जन्म स्थान राजापुर माना है। 
ण् इनकी माता ‘हुलसी’ तथा पिता का नाम ‘आत्माराम’’ था 
ण् बचपन का नाम रामभोला था इनकी पत्नी का नाम ‘रतनावलि’ 
प्रमुख रचनाएं - 
ण् आचार्य शुक्ल के अनुसार इनकी 12 रचनाएं है - 
रामचरितमानस - 
ण् यह महाकाव्य 1574 ई. में अयोध्या में लिखा गया 
ण् इसके अन्दर सात काण्ड ह ै 
ण् पहला बालकाण्ड तथा अंतिम सुन्दरकांड है 
ण् किष्किन्धा काड काषी में लिखा गया। 
ण् इसकी भाषा अवधि व शैली दोहा-चैपाई है। 
ण् इसमें तत्कालीन समय की वर्णव्यवस्था की हीनता का वर्णन है। 
ण् ‘‘भारतीय जनता का प्रतिनिधी कवि यदि किसी को कह सकते हैं तो 
वह तुलसीदास है।’’ आचार्य शुक्ल 
ण् इनके गुरू का नाम ‘‘नरहरिदास’’ है। 
बरबैरामायण - 
ण् इसकी रचना तुलसी ने रहीम के आग्रह पर की। 
कृष्णगीतावली - 
ण् सूरदास जी से मिलने के बाद लिखी। (अनुसरण के रूप में) 
ण् इसकी भाषा ब्रज है। 
रामाज्ञा प्रष्नावली - 
ण् पं. गंगाराम के अनुरोध पर लिखी। 
हनुमानबाहुक - (अप्रामाणिक) 
ण् बाहु पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए लिखी। 
विनय पत्रिका - 
ण् कलिकाल से मुक्ति पाने हेतु रामदरबार में अर्जी के रूप में प्रस्तुत 
किया। भाषा ब्रज है। 
ण् कवित रामायण (कवितावलि) 
ण् दोहावली 
ण् गीतावली 
ण् रामलल्ला नहह ु 
ण् वैराग्य संदीपनी 
ण् पार्वती मंगल - पार्वती के विवाह का वर्णन है। 
ण् जानकी मंगल - राम-सीता के विरह का वर्णन है। 
ण् तुलसी के राम को जानने के लिए रामचरितमानस को पढ़ें तथा 
तुलसी को जानने के लिए विनय पत्रिका पढ़ें। 
ण् विनय पत्रिका में नवधा भक्ति का स्वरूप है। 
ण् इनकी भक्ति दैन्य या दास्य भाव की है। 
ण् गीतावली की भाषा ब्रज ह ै तथा संस्कृत शब्दों की बहुलता ह ै 
ण् कवितावली तथा गीतावली गीतिकाव्य मुक्तक शैली की रचना है। 
ण् तुलसी अकबर के समकालीन थे। 
(प्ट) नाभादास - 
ण् ये तुलसीदास के समकालीन थे इनका असली नाम नारायण दास 
था। 
ण् इनकी प्रमुख रचना ‘‘भक्तमाल’’ जिसमें 200 कवियों का वर्णन है। 
(ट) केषवदास - 
ण् केषवदास हालांकि रचना की दृष्टि से रीतिकाल में माने जाते हैं 
लेकिन काल के अनुसार भक्तिकाल के कवि माने जाते हैं। 
प्रमुख रचनाएं - 
कविप्रिया 
रसिकप्रिया 
रामचन्द्रिका 
वीरसिंह चरित ् 
विज्ञान गीता 
रत्नबावनी 
जहांगिरी जसचन्द्रिका 
ण् ये हिन्दी कवियों में बहुप्रतिभा सम्पन्न कवि थे। इसलिए ये वीरसिंह 
और जहांगीर की स्तुति के कारण आदिकालीन ‘रामचन्द्रिका’ के 
कारण भक्तिकालीन ‘रसिक प्रिया’ और ‘कपि प्रिया’ के कारण 
रीतिकालीन कवियों में शामिल होते हैं। 
ण् रामचन्द्रिका की भाषा बुन्देलखण्डी मिश्रित ब्रज है। 
ण् ये ओरछा नरेष इन्द्रजीत सिंह के दरबारी कवि थे। 
ण् रामचन्द्रिका को ‘छन्दों का अजायबघर’ कहा जाता है। 
ण् आचार्य शुक्ल ने इन्हें ‘कठिन काव्य का प्रेत’ कहा है। 
रामकाव्य की प्रमुख विशेषताएं - 
1. दास्य भाव की भक्ति 
2. समन्वय का व्यापक प्रयास 
3. लोक-कल्याण की भावना 
4. मर्यादा एवं आदर्ष की स्थापना 
5. मुख्य काव्य भाषा-अवधी है 
‘‘रीतिकाव्य’’ 
1700-1900 वि. आचार्य शुक्ल के अनुसार 
सर्वमान्य मत 1650-1850 ई. डाॅ. नगेन्द्र 
अन्य नाम - 
उŸारमध्य काल-रीतिकाल - आचार्य शुक्ल 
अलंकृत काल - मिश्र बंधु 
श्रंृगार काल - विष्वनाथ प्रसाद मिश्र 
समर्थक हजारी प्रसाद द्विवेदी 
ण् 
‘रीति’ का अर्थ है - काव्यांग निरूपण 
ण् रीति काल की प्रथम रचना कृपाराम की ‘हिततरंगिणी’ को माना है। 
ण् रीतिकाल का प्रवर्तक ‘चिन्तामणी’ को माना जाता है। 
ण् रीतिकाल की अंतिम कृति ‘ग्वाल’ कवि की ‘रसरंग’ है। 
ण् मूलभूत अंतिम कवि ‘पद्माकर’ को माना जाता है। 
रीतिकाल का वर्गीकरण - 
(प्) रीतिबद्ध काव्य धारा - 
ण् इस वर्ग के कवियों ने काव्यांग निरूपएण को आधार मानकर लक्षण 
ग्रंथों की रचनाएं की। 
प्रमुख कवि:- 
- चिन्तामणी (प्रथम कवि) 
- मतिराम 
- देव 
- ग्वाल 
- केषदास 
- मंडन 
- भिखारीदास, जसवंतसिंह 
(प्प्) रीतिमुक्त कवि - 
ण् इस वर्ग में वे कवि आते हैं जिन्होनं े काव्यागं निरूपण करने वाले 
ग्रंथों की रचना न करके स्वछंद रूप से रचनाएं लिखी। 
प्रमुख कवि - 
- घनानंद 
- बोधा 
- आलम 
- ठाकुर 
(प्प्प्) रीतिसिद्ध काव्यधारा - 
ण् इस वर्ग में वे कवि आते हैं जिन्हें रीति की जानकारी तो थी लेकिन 
लक्षण ग्रंथ नहीं लिखे। 
प्रमुख कवि - 
- बिहारी 
- सेनापति 
- रसनिधि 
- नेवाज 
- परजेन 
प्रमुख रचनांए एंव कवि - 
1. चिन्तामणि - रसविलास, काव्यप्रकाष 
2. भूषण - षिवराज भूषण, षिवा बावनी, छत्रषाल दषक 
3. मतिराम - रसराज, ललितललांग, फूल मंजरी 
4. बिहारी - बिहारी सतर्सइ  
5. बोधा - ईष्कनामा, विरहवारिस 
6. रसलीन - अंगदर्पण 
7. घनानंद - वियोगवेलि, प्रितिपावस, सुजानहित प्रबंध, घनानंद पदावली 
8. पद्माकर/पद्याकर- जगतविनोद, पद्माभरण, प्रबोधपचासा, गंगालहरी 
रीतिकाल की प्रमुख प्रवृŸिायाँ - 
ण् रीति निरूपण 
ण् श्रृंगारिकात 
ण् अलंकारिकता 
ण् बहुज्ञेता एवं चमत्कार प्रदर्षन 
ण् भक्ति एवं निति 
ण् लोकमंगल की भावना का अभाव 
ण् राजप्रषस्ति 
ण् ब्रजभाषा का प्रयोग 
ण् प्रकृति चित्रण 
रीतिकाल के प्रमुख कवि - 
(1) केषवदास - 
ण् शुक्ल जी ने इन्हें समय की दृष्टि से भक्तिकाल में स्थान दिया तथा 
प्रवृŸिा की दृष्टि से रीतिकाल में आते हैं। 
ण् शुक्ल जी इन्हें ‘‘कठिन काव्य का प्रेत’’ कहा है। 
ण् केषव को संवाद योजना में सर्वाधिक सफलता रामचन्द्रिका से मिली। 
ण् ‘केषव को कवि हृदय नहीं मिला।’ (आचार्य शुक्ल) 
ण् ‘प्रबंध रचना के योग्य न तो केषव में शक्ति थी और न अनुभूति।’ 
(आचार्य शुक्ल) 
प्रमुख रचनाएं - 
सिकप्रिया - श्रृंगार विवेचन 
कविप्रिया - आश्रयदाता इन्द्रजीतसिंह के सानिध्य में लिखी। आचार्यत्व 
एवं कवित्व की पूर्ण अभिव्यक्ति इसी ग्रंथ में हुई 
छंदमाला 
रामचन्द्रिका - रामकथा 
विज्ञानगीता - आध्यात्मिक ग्रंथ 
ण् 
हिन्दी में सर्वप्रथम सर्वांग निरूपण केषवदास ने किया। रामचन्द्रिका 
को ‘छंदों का अजायबघ’ कहा जाता है। 
ण् ‘‘भूषण बिनु न विराजइ, कविता वनिता मीत’’ 
(2) मतिराम - 
ण् कवि भूषण एवं चिन्तामणि के भाई कहे जाते हैं। 
ण् ‘‘कुन्दन को रंग जिको लगे’’ - मतिराम 
प्रमुख रचनाएं - 
- रसराज - श्रृंगार एवं नायिका भेद वर्णन 
- ललित ललांग 
- फूल मंजरी 
- वृतकौमुदी 
(
3) भूषण - 
ण् ये षिवाजी एवं छत्रसाल बुन्देला के आश्रय में रहते थ। 
ण् रीतिकाल के ऐसे कवि जिन्होंने वीर रस की कविताएं लिखकर 
ख्याति अर्जित की। 
ण् राजा रूद्रषाह सोलंकी ने ‘‘भूषण’’ की उपाधि प्रदान की (नाम पता 
नहीं) 
ण् इनकी पालकी में स्वयं महाराजा छत्रसाल ने कंधा लगाया 
प्रमुख रचनाएं - 

िषवराज भूषण - जयदेव के ‘‘चन्द्रालोक’’ पर आधारित अलंकार ग्रंथ 
षिवा बावनी - षिवाजी की वीरता का वर्णन 
छत्रषाल दषक - छत्रषाल की वीरता का वर्णन 
इनकी रचनाएं राष्ट्रीयता की भावना से प्रेरित है। 
(4) बिहारी - 
ण् जन्म 1595 - ग्वालियर 
ण् मिर्जा राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे। 
ण् राजा इन्हें प्रत्येक दोहे पर एक स्वर्ण मुद्रा देते थे। 
ण् ‘‘बिहारी सतसई’’ मूलतः श्रृंगार रस से ओत-प्रोत मुक्तक काव्य है 
इसे श्रृंगार, भक्ति ओर निति की त्रिवेणी का जाता है। 
ण् इसमें 713 दोहे है। 
ण् ‘‘जिस कवि की कल्पना की समाहार शक्ति के साथ भाषा की 
सामासिक शक्ति जिनती अधिक होगी उतना ही वह मुक्तक रचना में 
सफल होगा यह क्षमता बिहारी में पूर्णरूप से विद्यमान थी।’’ (आचार्य 
शुक्ल) 
ण् ‘‘यदि प्रबंध काव्य एक विस्तृत वनस्थली है तो मुक्तक एक चुना 
हुआ गुलदस्ता।’’ (आचार्य शुक्ल) 
(5) देव - 
ण् इनका पुरा नाम देवदŸा था तथा ये ईटावा के रहने वाले थे। 
ण् इन्हें अनेक राजाओं का आश्रय प्राप्त हुआ क्योंकि इन्हें कोई उदार 
आश्रयदाता नहीं मिला। 
ण् ‘‘रीतिकाल के कवियों में ये बड़े ही प्रतिभासम्पन्न कवि थे।’’ (आचार्य 
शुक्ल) 
प्रमुख रचनाएं - 
भाव विलास - इस रचना को आजमषाह को सुनाया। जो हिन्दी कविता 
के प्रेमी थे। 
अष्टयाम - नायक-नायिका विविध विलासो का वर्णन 
देवषतक - आध्यात्मिक ग्रंथ। 
रागरत्नाकर - संगीत विषय ग्रंथ 
रसविलास - राजा भोगीललाल के आश्रय में लिखा 
देवचरित्र - कृष्ण काव्य पर आधारित 
सुख सागर तरगं - नायिका भेद व रसवर्णन 
शब्द रसायन - लक्षण ग्रंथ 
देवमाया प्रंपच - प्रबोध चन्द्रोदय नामक संस्कृत नाटक का पद्य में 
अनुवाद 
भवानीविलास 
कुषल विलास 
प्रेम चन्द्रिका 
सुजान विनोद 
प्रेम तरंग 
जाति विलास 
(
6) घनानन्द - 
ण् ये रीतिमुक्त धारा के श्रृंगारी कवि है। 
ण् दिल्ली के बादषाह मुहम्मदषाह के यहां मरी मुन्षी थे। 
ण् भाषा के लक्षक एवं व्यजंक बल की सीमा कहां तक हैं इसकी पूरी 
परख इन्हीं को थी - (आचार्य शुक्ल) 
ण् प्रेम मार्ग का ऐसा प्रवीण और वीर पथिक तथा जबांदानी का 
दावा रखने वाला ब्रज भाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ। 
ण् ‘‘अति सूधो स्नेह को मार्ग है। - घनानन्द 
प्रमुख रचनाएं - 
सुजानसागर 
विरहलीला 
लोकसार 
रसके लिषलिली 
कृषाकांड 
सुजान हित प्रबंध 
सुजान विनोद 
(
7) पद्माकर - 
ण् ये रीतिकाल मंे बिहारी के बाद सर्वाधिक लोकप्रिय कवि थे। 
रचनाएं - 
हिम्मत बहादुर विरूदावली - वीर रस प्रधान चरित काव्य 
प्रतापषाही विरूदावली - चरित्र प्रधान काव्य 
जगतविनोद - श्रृंगार रस का ग्रंथ (प्रतापसिंह के पुत्र जगतसिंह के 
संरक्षण में लिखा) 
पद्माभरण - अलंकार ग्रंथ 
कलिपचीसी - कलियुग का वर्णन 
प्रबोधपचासा - वैराग्य निरूपण 
गंगालहरी - गंगा की महानता का वर्णन 
(
8) वृन्दकवि - 
ण् इन्होंने लोक जीवन को अपना काव्य विषय बनाया तथा वृंद सतसई 
की रचना की। 
ण् ‘‘फीकी पे निकी लगै, कहिए समय विचारि। 
सबको मन हर्षित करे, ज्यों विवाह में गारि।।’’ 
ण् आचार्य शुक्ल ने रीतिकाल का प्रर्वतक आचार्य चिन्तामणी को माना 
है। 
ण् इस काल की मुख्य विशेषता श्रृंगारिकता एवं रीति निरूपण है। 
ण् रीतिकाल का अंतिम कवि ‘ग्वाल’ को माना जाता है। 
ण् हिन्दी सतसई परम्परा में प्रथम रचना ‘‘कृपाराम’’ की ‘‘हिततरंगिणी’’ 
है। 
ण् सेनापति ने रीतिकाल में पकृ्र ति का स्वतंत्र रूप से चित्रण किया। 
ण् आचार्य शुक्ल ने घनानन्द को ‘‘साक्षात ् रसमूर्ति’’ कहा है। 
ण् भूषण को रीतिकाल का ‘राष्ट्रकवि’ कहा जाता है। 
‘‘आधुनिक काल’’ 
आधुनिक काल - 1850 से आगे 
1900 आचार्य शुक्ल के अनुसार 
नामकरण - 
गद्यकाल - आचार्य शुक्ल 
वर्तमानकाल - मिश्र बंध ु 
आधुनिक काल - रामकुमार वर्मा और गणपति चन्द्रगुप्त 
हिन्दी गद्य का उद्भव एवं विकास - 
ण् विठ्ठलदास के द्वारा ‘श्रृंगार रस मण्डल’ नाम ग्रंथ बृज भाषा में 
लिखा गया। 
ण् वार्ता साहित्य में गोकुल नाथ के दो ग्रंथ प्रमुख हैं। 
ण् 84 वैष्णवन की वार्ता - वल्लभाचार्य के षिष्यों का वर्णन 
ण् 252 वष्ै णवन की वार्ता - विठ्ठलनाथ के षिष्या ें का वर्णन 
ण् नाभादास द्वारा रचित ‘अष्टयाम’ बृज भाषा गद्य में है। 
ण् खड़ी बोली गद्य की महत्वपूर्ण रचना गंगकवि द्वारा वाचित ‘चन्द छंद 
वर्णन की महिमा’ है। 
ण् रामप्रसाद निरन्जनी ने ‘‘भाषायोग वषिष्ठ’’ नामक गद्य ग्रंथ साफ 
सुथरी खड़ी बोली में लिखा। 
ण् आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने ‘‘रामप्रसाद निरन्जनी’’ को प्रथम प्रौढ़ गद्य 
लेखक माना है। 
खड़ी बोली गद्य की प्रारम्भिक रचनाएं एवं रचनाकार - 
1. लल्लू लाल - ‘‘प्रेमसागर’’ भागवत् के दषम स्कन्ध की कथा का 
वर्णन 

िवषेषताएं - 
ण् ये फोर्ट विलियम काॅलेज के हिन्दी, उर्दू अध्यापक ‘‘जाॅन 
गिलक्राइस्ट’’ के आदेश्ष् से प्रेमसागर की रचना कार्य में लगे। 
ण् फोर्ट विलियम काॅलेज की स्थापना - 4 मई 180र्0 इ. 
ण् ये आगरा के गुजवाती ब्राह्मण थे। 
ण् खड़ी बोली तथा उर्दू दोनों में रचनाएं की। 
ण् इन्होंने ‘‘लाल चन्द्रिका’’ नाम से बिहारी सतसई पर टीका लिखी। 
ण् कोलकाता में ‘‘संस्कृत प्रेस’’ की स्थापना की 
ण् उर्दू में रचनाएं - बेताल पच्चीसी, सिंहासन बतीसी, शकुन्तला नाटक 
2. सदल मिश्र - 
ण् ये फोर्ट विलियम काॅलेज में काम करते थे। 
ण् इनकी प्रमुख रचना ‘‘नासिकेतोपाख्यान’’ है। 
ण् इनकी भाषा में पूर्वीपन था। 
3. मुंषी सदासुख लाल ‘‘नियाज’’ - 
ण् ये दिल्ली के रहने वाले थे। 
ण् हिन्दी में ‘‘श्रीमतभागवत पुराण’’ का अनुवाद ‘‘सुखसागर’’ नाम से 
किया। 
ण् इन्होंने हिन्दुओं की बोल-चाल की षिष्ट भाषा में रचना की। 
4. इन्षां अल्ला खां - 
ण् रचना - ‘‘रानी केतकी की कहानी’’ इसको ‘‘उदयभान चरित’’ भी 
कहते हैं। 
ण् ये उर्दू के प्रसिद्ध शायर थे। जो दिल्ली के उजड़ने पर लखनऊ आ 
गए थे। 
ण् इन्होंने ठेठ हिन्दी में लिखा। 
ण् इनकी भाषा सबसे अधिक चटकीली, मुहावरेदार एवं चुलबुली है। 
ण् शुक्ल जी ने इन्हें विषेष महत्व प्रदान किया 
5. राजा षिवप्रसाद ‘सितार-ए-हिन्द’ - 
ण् ये हिन्दी-उर्दू के संघर्ष काल में हिन्दी क े पक्षधर बनकर सामने 
आए। 
ण् जबकि इनके विरोधस्वरूप सर सय्यद अहमद खां ने स्कूलों में हिन्दी 
पढ़ाने का विरोध किया। तथा गासो-द-तासी नामक फ्रांसीसी 
विद्वान ने हिन्दी-उर्दू के इस झगड़े को फ्रांस में बैठकर हवा दी। 
ण् सितार-ए-हिन्द षिक्षा विभाग में इन्सपेक्टर के पद पर थे तथा 
अंग्रेजों के कृपापात्र थे। 
ण् इन्होंने मध्यवर्ती मार्ग का अनुसरण किया तथा बड़ी चतुराई से हिन्दी 
की रक्षा की। 
ण् इन्होंने ‘बनारस’ अखबार काषी से निकाला (1849) 
प्रमुख रचनाएं - 
राजा भोज का सपना - सरल हिन्दी का प्रयोग 
मानव धर्मसार - संस्कृतनिष्ठ हिन्दी का प्रयोग 
इतिहास तिमिरनाषक - उदूर्पन 
आलसियों का कीड़ा - 
6. राजा लक्ष्मणसिंह - 
ण् ये आगरा के रहने वाले थे। 
ण् इन्होनें ‘‘प्रजा हितैषी’’ नामक पत्र आगरा से निकाला। 
ण् ‘‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’’ का अनुवाद शुद्ध हिन्दी में किया। 
ण् इनकी भाषा को देखकर अंग्रेज विद्वान फ्रेडरिक पिन्काट बहुत 
प्रसन्नत हुए। 
ण् पिन्नकाट महोदय इंग्लैड के अखबारों में हिन्दी लेखकों एवं ग्रंथों का 
परिचय देते रहते थे। तथा राजा लक्ष्मणसिंह, भारतेन्दु हरिष्चन्द्र 
प्रतापनारायण मिश्र आदि हिन्दी लेखकों से पत्र व्यवहार भी करते 
रहते थे। 
7. बाबू नवीन चन्द्रराय - 
ण् इन्होंने सितार-ए-हिन्द के साथ उर्दू के पक्षपातियों से बराबर संघर्ष 
किया। 
ण् इनके एक व्याख्यान से हिन्दी के पक्के दुष्मन गार्सा-द-तासी बहुत 
नाराज हुए और उन्होंने नवीन बाबू को हिन्दू कहते हुए हिन्दी का 
विरोध एवं उर्दू का समर्थन किया। 
भारतेन्दु युग - (पुनर्जागरण काल) - 1857-190र्0 इ. 
ण् 
भारतेन्दु जी ने राजा षिवप्रसाद ‘सितारे-ए-हिन्दी’ व राजा 
लक्ष्मणसिंह की भाषाओं के बीच का मार्ग अपनाया। 
ण् इनका रचनाकाल 1850 से 1885 ई. तक रहा 35 वर्ष की आयु में 
मृत्यु। 
ण् ये सही अर्थ में हिन्दी गद्य के जनक माने जाते हैं। 
ण् क्योंकि इन्होंने न केवल गद्य की भाषा का संस्कार किया अपितु पद्य 
की ब्रज भाषा को भी सुधारा 
ण् भारतेन्दु युग में गद्य का आरम्भ नाटकों से हुआ। ये लेखक स्वयं ही 
अभिनय करते थे। 
ण् प. षितला प्रसाद त्रिपाठी कृत ‘‘जानकी मंगल’’ नाटक में भारतेन्दु 
जी ने स्वयं अभिनय किया। 
ण् इस काल की भाषा-गद्य खड़ी बोली में। पद्य ब्रज भाषा में। 
भ्
ाारतेन्दु का की प्रमुख प्रवृŸिायाँ - 
ण् राष्ट्रीयता की भावना 
ण् समाज की दुर्दषा का चित्रण 
ण् भक्ति भावना 
ण् हास्य-व्यंग्य की प्रधानता 
ण् प्रकृति-चित्रण 
ण् समस्या-पूर्ति 
प्रमुख पत्र-पत्रिकाएं - 
1. सदादर्ष (दिल्ली से) - लालश्री निवासदास संपादक 
2. हिन्दी प्रदीप (प्रयाग से) - बालकृष्ण भट्ट 
3. आनन्द कादम्बिनी (मिर्जापुर से) - बद्रीनारायण चैधरी ‘प्रेमधन’ 
4. ब्राह्मण (कानपुर से) - प्रतापनारायण मिश्र 
5. कविवचन सुधा (काषी) - भारतेन्दु हरिष्चन्द ्र 
6. हरिष्चन्द्र मग्ै जीन/हरिष्चन्द्र चन्द्रिका (बनारस) - भारतेन्दु हरिष्चन्द ्र 
गद्य का परिष्कृत रूप इसी पत्रिका में सामने आया 
7. बालवोधिनी (बनारस) - भारतेन्दु - नारी षिक्षा के लिए 
भारतेन्दु काल के प्रमुख कवि:- 
1. भारतेन्दु - (जन्म 185र्0 इ. 1885 ई. तक (35 वर्ष)) 
ण् इनके लेखन में राजभक्ति के साथ-साथ देषभक्ति की भावना 
विद्यमान थी। 
ण् ये हिन्दी नवजागरण के ‘अग्रदूत’ कहलाते हैं तथा इन्हें आधुनिक 
काल का जनक भी माना जाता है। 
ण् इनका मूल नाम ‘हरिष्चन्द्र’ था ‘भारतेन्दु’ की उपाधि 1880 में 
तत्कालीन साहित्यकारों एवं पत्रकारों ने दी। 
ण् ये प्रयोगधर्मी मनोवृति के साहित्यकार थ े 
ण् इनकी कविता की सबसे बड़ी विषेषता प्राचीन व नवीन का समन्वय 
है। 
ण् शुक्ल जी के अनुसार भारतेन्दु की कविता में सबसे ऊँचा स्वर 
देषभक्ति का था। 
ण् उर्दू में ‘रसा’ नाम से कविता लिखते थ े 
ण् इनके भक्तिकाव्य पर सूरदास जी का प्रभाव है। 
ण् हिन्दी गद्य का परिष्कृत रूप पहले पहल ‘हरिष्चन्द्र चन्द्रिका’ में 
प्रकट हुआ। 
प्रमुख रचनाएं - 
मौलिक नाटक - 
1. ‘‘वैदिकी हिंसा हिंसा न भवित’’ 
2. ‘‘चन्द्रावली नाटिका’’ - प्रेम के आदर्ष का निरूपण 
3. ‘‘विषस्य विषमौषधम’’ - देषी रजवाड़ी के षड़यंत्र 
4. ‘‘भारत दूर्दषा 
5. नीलदेवी - ऐतिहासिक नाटक 
6. अंधेर नगरी 
7. प्रेम योगिनी - धार्मिक पाखण्ड 
8. सती प्रताप - अधूरा नाटक 
9. भारत जननी 
अनुदित नाटक 
1. विद्या सुन्दर 
2. कर्पूरमंजरी 
3. पाखण्ड विडम्बन 
4. धनन्जय विजय 
5. मुद्राराक्षस 
काव्य कृतियां - 
1. प्रेम माधुरी 
2. प्रेम तरंग 
3. प्रेम प्रलाप 
4. होली 
5. मधु मुकुल 
6. वर्षा विनोद 
7. विनय प्रेम पचासा 
8. प्रेम फुलवारी 
9. दानलीला 
10. बकरी विलाप 
11. फुलों का गुच्छा (शुद्ध खड़ी बोली) 
प्रमुख उपन्यास - 
1. हम्मीर हठ 
2. सुलोचना 
3. शीलावती 
4. सावित्रि चरित्र 
प्रमुख निबंध - 
1. सबै जाति गोपाल की 
2. मित्रता 
3. सूर्योदय 
4. कुछ आप बीती कुछ जगबीती (मुकरियों ओर पहेलियों को लोकप्रिय 
बनाने का कार्य आधुनिक काल भारतेन्दु) 
2. प्रतापनारायण मिश्र - 
ण् ये कानपुर की संस्था ‘रसिक समाज’ से जुड़े हुए थे। 
ण् ये हास्य व व्यंग्य में अग्रणी थे। 
ण् ‘‘ब्राह्मण’’ पत्र का सम्पादन किया। 
ण् इन्होंने ‘‘आल्हा एवं लावणी’’ का प्रयोग अपने काव्य में किया 
प्रमुख रचनाएं - 
1. प्रेम पुष्पावली 
2. मन की लहर 
3. लोकोकक्ति शतक 
4. श्रृंगार विलास 
5. हिन्दी की हिमायत 
6. बुढ़ापा 
7. हरगंगा 
3. बद्रीनारायण चैधरी ‘‘प्रेमधन’’ - 
ण् ये उŸार प्रदेष के मिर्जापुर के ब्राह्मण थे। 
ण् इन्होंने ‘‘साहित्यिक नागरी निरद’’ एवं ‘‘आनन्द काद बिनी’’ का 
सम्पादन किया। 
ण् इन्होंने ‘अब्र’ नाम से उर्दू में कविताएं भी लिखी। 
प्रमुख रचनाएं - 
1. जीर्णजिनपद 
2. आनन्द अरूणोदय 
3. वर्षा बिन्दू 
4. मयंक महिमा 
5. लालित्य लहरी 
4. अंबिका दŸा व्यास - 
ण् ये हिन्दी एवं संस्कृत दोनों भाषाओं के विद्वान थे। 
ण् इन्होंने ‘‘पीयूष प्रवाह’’ का सम्पादन कार्य किया। 
प्रमुख रचनाएं - 
1. हो-हो होरी 
2. पावस पचासा 
3. सूकवि सतसई 
ण् 
इन्होंने ‘‘भारत सौभाग्य’’ ‘‘गौसंकट’’ नाम से नाटक लिखे। 
ण् ‘‘बिहारी विहार’’ में बिहारी के दोहों का कुण्डलियां छंद में 
भाव-विस्तार किया। 
ण् ‘‘कंष वध’’ नाम से खड़ी बोली में प्रबंध काव्य की रचना की। जो 
अपूर्ण रहा। 
5. जगमोहन सिंह - 
ण् इनके काव्य में श्रृंगार वर्णन एवं पकृ्र ति चित्रण प्रमुखता से मिलता 
है। 
ण् इनके काव्य में श्रृंगार वर्णन एवं पकृ्र ति चित्रण प्रमुखता से मिलता 
है। 
ण् अलंकारों का स्वाभाविक नियोजन इन की रचनाओं में मिलता है। 
प्रमुख रचनाएं - 
1. प्रेम सम्पातिलता 
2. श्यामालता 
3. श्यामा सरोजिनी 
4. ऋतुसंहार (अनुदित रचना) 
5. मेघदूत (अनुदित रचना) 
6. राधाकृष्णदास - 
ण् भारतेन्दु हरिष्चन्द्र के फुफेरे भाई थे। 
प्रमुख रचनाएं - 
1. भारत बारहमासा 
2. देषदषा 
3. राधाकृष्ण ग्रंथावली 
ण् 
प्रतापनारायण मिश्र एवं राधाकृष्ण दास ने अपने काव्य में श्रृंगार 
चित्रण नहीं किया। 
द्विवेदी युग (जागरण सुधार/नवजागरण) 
समय - 1900 से 1920 तक 
नग्रेन्द्र के अनुसार - 1900- 1918 तक 
ण् भारतीय जनमानस में स्वदेष प्रेम एवं नवजागरण के जे बीज 
भारतेन्दु युग में अंकुरित हुए थे वे द्विवेदी युग में पूर्ण पल्लवित 
होकर सामने आए। 
ण् इस युग का नामकरण ‘आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी’ के नाम पर 
है। 
ण् इस काल में काव्य भाषा के रूप में ब्रज भाषा का स्थान ‘खड़ी बोली 
हिन्दी’ ने लिया। 
ण् द्विवेदी जी ने भाषा संस्कार, व्याकरण, शुद्धि, विराम-चिन्हों के प्रयोग 
द्वारा हिन्दी को परिनिष्ठित करने का कार्य किया। 
ण् संस्कृत छंदो की उपयोगिता बताकर द्विवेदी जी ने छंदो में क्रांति 
लाने का कार्य किया तथा ‘‘कवित सवैया’’ का बहिष्कार किया। 
ण् हिन्दी कविता को प्राचीन रूढि़बद्धता से अलग करने में द्विवेदी युग 
के कवियों का विषेष योगदान रहा। 
ण् भारतेन्दु कालीन साहित्यकार जहां भारत दुर्दषा पर दुःख प्रकट 
करके रह गए थे वहीं द्विवेदी युग के कवियों ने स्वतंत्रता प्राप्ति की 
प्रेरणा भी दी। 
ण् इस काल में मातृभूमि प्रेम, स्वेदष गौरव, सामाजिक विषय आदर्षवाद 
आदि को कविता में स्थान मिला। 
ण् द्विवेदी के प्रभाव से श्रीधर पाठक, नाथूराम शर्मा (षंकर) एवं 
‘हरिऔध’ ने ब्रज भाषा को छोड़कर खड़ी बोली को अपनाया। 
ण् ‘प्रभा’ एवं ‘मर्यादा’ इस काल का महत्वपूर्ण पत्रिकाएं थी। 
ण् सरस्वती पत्रिका का प्रकाषन 1900 ई. से प्रारम्भ हुआ तथा सन् 
1903 से 1920 ई. तक द्विवेदी जी ने सपांदन कार्य किया। 
ण् द्विवेदी युग में प्रकृति को पहली बार काव्य विषय के रूप में मान्यता 
मिली है। 
ण् इस काल में जगन्नथदास रत्नाकर सत्यनारायण कविरत्न, रमाषंकर 
शुक्ल ‘रसाल’ एवं वियोगी हरि ने ब्रज भाषा में रचनाएं की। 
ण् अनुषासन धारा के कवि - (द्विवेदी मण्डल कवि) 
- मैथिलीषरण गुप्त 
- हरिऔध 
- नाथूराम शर्मा (षंकर) 
- सियारामषरण गुप्त 
स्वछंदतावादी काव्यधारा के कवि - द्विवेदी मण्डल के बाहर के 
कवि 
- मुकुटधर पांडे 
- लोचन प्रसाद पांडे 
- रामनरेष त्रिपाठी 
- ‘‘सरस्वती पत्रिका के ‘‘हे कविŸो’’ प्रकाषन में द्विवेदी जी ने ब्रज भाषा 
के चिरप्रयोग पर क्षोभ व्यक्त किया। 
प्रमुख प्रवृŸिायां - 
ण् राष्ट्रीय भावना 
ण् सामाजिक समस्याओं का चित्रण 
ण् इतिवृŸाात्मकता 
ण् नैतिकता एवं आदर्षवाद 
ण् काव्यरूपों की विविधता 
ण् खड़ी बोली का काव्यभाषा के रूप में प्रयोग 
ण् प्रकृति चित्रण 
ण् छन्दों की विविधता 
ण् हास्य व्यंग्य 
प्रमुख रचनाकार एवं रचनाएं - 
1. मैथिलीषरण गुप्त - 
ण् इन्हें हिन्दी का राष्ट्रीय काव्यधारा का प्रतिनिधि कवि एवं राष्ट्रकवि 
कहा जाता है। 
ण् इन्होंने हिन्दी साहित्य में उपेक्षित नारी पात्रों को विषेष महत्व दिया 
तथा ‘‘साकेत-यषोधरा’’ आदि रचनाएं की। 
ण् ‘भारत-भारती’ ने बहुत प्रसिद्धि पायी जिसमें भारत अतीत गारै व का 
गान है। अंग्रेजों ने इसे प्रतिबंधित कर दिया था। 
ण् इनकी आरम्भिक रचनाएं ‘वेष्योपकारक’ में प्रकाषित होती थी बाद में 
सरस्वती में प्रकाषित होने लगी। 
ण् इनकी प्रथम रचना ‘रंग में भंग’ का प्रकाषन 1909 में हुआ। 
ण् ‘भारत-भारती’ का प्रकाषन - 1912 में (राष्ट्रकवि की उपाधि मिली) 
ण् ये रामभक्त कवि थे इसका उदाहरण इनकी रचना साकेत है। 
साकेत के 9वें सर्ग में उर्मिला का विरह वर्णन है। 
यषोधरा - बुद्ध के गृह त्याग पर आधारित है। 
अन्य रचनाएं - 
- जयद्रथ वध 
- पंचवटी 
- झन्कार 
- साकेत (1931) 
- यषोधरा (1932) 
- द्वापर 
- जयभारत 
- विष्णुप्रिया 
प्रमुख नाटक - 
- कितोŸामा 
- चन्द्रहास 
- अनध 
अर्जन और विसर्जन’ तथा ‘‘काबा और कर्बला’’ इनकी मुस्लिम संस्कृति 
से संबंधी रचनाएं है। 
‘‘किसान’’ और ‘‘विष्ववेदना’’ सामाजिक रचनाएं है। 
2. अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘‘हरिऔध’’ - 
ण् पुरातन संस्कृत का पुनरोद्धार एंव कविता में उपदेषात्मक प्रवृŸिा 
इनकी मुख्य विषेषताएं है। 
ण् (1914) ‘‘प्रिय प्रवास’’ खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है। इसमें राधा 
और कृष्ण को सामान्य नायक-नायिकाओं तो ऊपर विष्वशैली एवं 
विष्वप्रेमी के रूप में चित्रित कर ‘हरिऔध’ ने अपनी मौलिकता का 
परिचय दिया है। 
ण् (1940) ‘‘वैदेही वनवास’’ खड़ी बोली में रचित तथा रामकथा पर 
आधारित महाकाव्य है। 
ण् ‘‘रसकलष’’ रीति ग्रंथ रस के प्रकार एवं स्वरूप का वर्णन भाषा ब्रज 
है। 
‘‘पद्य प्रसुन’’ 
चुभते चापै द े 
चाख्ै ो चापै द े 
बोलचाल 
परिजात 
ण् ‘‘प्रिय प्रवास’’ के लिए ‘‘मंगलप्रसाद’’ पारितोषिक मिला 
ण् इन्हें ‘कवि सम्राट’ भी कहा जाता है। 
3. नाथूराम शर्मा (शंकर) - 
ण् इन्होंने राजा विवर्मा के चित्रों के आधार पर सुन्दर काल की रचना 
की। 
ण् इन्हें ‘कविता कामिनी कान्त’, ‘भारतेन्दु प्रज्ञेन्दु, ‘साहित्य सुधाकर’ 
आदि उपाधियों से विभूषित किया गया है। 
4. श्रीधर पाठक - 
ण् इन्होंने ब्रज एंव खड़ी बोली दोनों में काव्य रचना की 
प्रमुख वृŸिायां - 
- काष्मीर सुषमा 
- देहरादून 
- वनाष्टक 
- श्रृंगार 
ण् इन्होंने ‘गोल्ड स्मिथ’ की रचनाओं का अनुवाद ‘‘उजड़ग्राम’’’ (डेजर्ट 
विलेज) एकान्तवासी योग (हर्मिट), श्रान्तपथिक (दे ट्रेवलर) नाम से 
किया 
5. महावीर प्रसाद द्विवेदी - 
रचनाएं - 
- काव्य मंजूषा 
- सुमन 
- कान्यकुब्ज 
- अबला विलाप (मौलिक अध्याय) 
गंगा लहरी, ऋतुतरंगिणी, कुमार सम्भव सार (अनुदित रचनाएं) 
6. राय देवीप्रसाद पूर्ण - 
ण् 
इन्होंने ‘‘धारा-धर-धावन’’ शीर्षक से ‘कालीदास’ के ‘मेघदूत’ का 
पद्यानुवाद किया। 
ण् ‘स्वदेषी कुण्डल’ में देषभक्ति से पूर्ण 52 कुण्डलियों की रचना की 
है। 
अन्य रचनाएं - 
- मृत्युंजय 
- राम रावण विरोध 
- वसन्त वियोग 
7. गया प्रसाद शुक्ल ‘स्नेही’ - 
ण् इन्होंने हिन्दी के साथ उर्दू में भी रचनाएं की। 
ण् श्रृंगार से सम्बन्धित रचनाएं ‘स्नहे ी’ उपनाम से तथा राष्ट्रीय भावना 
से सम्बन्धि रचनाएं ‘‘त्रिषुल’’ उपनाम से की। 
ण् ‘‘सुकवि’’ नामक पत्रिका का सम्पादन किया। 
प्रमुख रचनाएं - 
- कृषक क्रन्दन 
- प्रेम पचीसी 
- राष्ट्रीय वीणा 
- त्रिषुलत रंग 
- करूणा कादम्बिनी 
ण् ‘भारतोत्थान’ एवं ‘भारत प्रषंसा’ उनके देषभक्ति के परिपूर्ण काव्य 
है। 
ण् ‘बाल विधवा’ में सामाजिक भावना तथा जार्ज वंदना में राजभक्ति की 
भावना विद्यमान है। 
8. रामनेरष त्रिपाठी - 
प्रमुख रचनाएं - 
- मिलन (1977) 
- पथिक (1920) 
- मानसी (1927) 
- स्वप्न (1929) 
- कविता कौमुदी (आठ भागों में) 
मानसी’ में देषभक्ति की फुटकर कविताएं है। 
9. गिरीधर शर्मा (नवरत्न) - 
ण् ये झालारापाटन राजस्थान के थे। 
ण् इनकी प्रमुख मौलिक रचना ‘‘मातृवंदना’’ है। 
ण् ‘‘ब्रज भाषा में काव्य रचना’’ 
10. जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ - 
ण् 
इन्होंने ‘जकी’ उपनाम से उर्दू में रचना की। 
ण् इनकी रचना ‘उद्धवषतक’ भ्रमरगीत परम्परा का ग्रंथ है। तथा यह 
ब्रज भाषा की अंतिम प्रसिद्ध रचना मानी जाती है। 
प्रमुख रचनाएं - 
- गंगावतरण 
- श्रृंगार लहरी 
- हरिष्चन्द ्र 
- हिंडोला 
ये भक्तिकाल और रीतिकाल के समन्वय के कवि माने जाते हैं। 
‘‘छायावादी काव्य’’ 
समयावधि - 1918 ई. - 1936 ई. (नग्रेन्द्र 191र्8 इ. -1938 ई.) 
ण् 
छायावादी काव्य का जन्म द्विवेदी युगीन काव्य की प्रतिक्रिया स्वरूप 
हुआ। क्योंकि द्विवेदी काल की रचनाएं विषयनिष्ठ, वर्णनप्रधान एवं 
स्थूल थी। जबकि छायावादी कविता व्यक्तिनिष्ठ, कल्पना प्रधान एवं 
सूक्ष्म है। 
ण् ‘‘छायावाद स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह है।’’ डाॅ. नगेन्द्र 
ण् आचार्य शुक्ल ने छायावाद शब्द का प्रयोग दो अर्थों में माना है - 
रहस्यवाद एंव काव्यषैली 
प्रमुख प्रवृŸिायां - 
ण् आतमभियंजना 
ण् सौन्दर्य चित्रण 
ण् श्रृंगार निरूपण 
ण् नारी भावना 
ण् रहस्यवाद 
ण् प्रकृति चित्रण 
ण् दुःख एवं वेदना की अनुभूति 
ण् राष्ट्रप्रेम की अभिव्यक्ति 
प्रमुख कवि - 
1. जयषंकर प्रसाद - (1890-1937 ई) जीवनकाल 
ण् 
इनका जन्म काषी में ‘सुंगनीसाहु’ घराने में हुआ 
प्रमुख रचनाएं - 
ण् झरना (191र्8 इ. ) प्रथम छायावादी रचना 
ण् आंसू - यह एक स्मृति काव्य है तथा इसमें विष्व कल्याण की 
भावना भी निहित है। 
ण् लहर - गीतिकाव्य 
ण् कामायनी - (1935) छायावादी महाकाव्य जिसके 15 सर्ग है। 

िद्ववेदी काली काव्य - 
ण् 
उर्वषी (1909) 
ण् वनमिलन (1909) 
ण् प्रेमराज्य (1909) 
ण् अयोध्या का उद्धार (1910) 
ण् शोकोच्छवास (1910) 
ण् वभ्रुवाहन (1911) 
ण् कानन कुसुम (1913) 
ण् प्रेम पथिक (1913) 
ण् करूणालय (1913) 
ण् महाराणा का महŸव (1914) 
2. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ - जन्म 1897 
ण् इनका जीवन अभाव एवं समस्याओं से पीडि़त रहा 
ण् साहित्यिक जीवन में 1916 में ‘जूही की कली’ का प्रकाषन उनके 
लिए भरपूर विरोध लेकर आया 
ण् इन्होंने ‘मतवाला’ और ‘समन्वय’ नाम पत्रों का संपादन किया। 
ण् ‘‘राम की शक्ति पूजा’’ (1936) नाम लम्बी कविता ‘‘अनामिका’’ में 
संग्रहित है। 
ण् ‘‘अनामिका’’ (1923) इनका पहला काव्य ग्रंथ है। 
ण् ‘‘तुलसीदा’’ में तुलसी के माध्यम से भारतीय जीवन मूल्यों की 
प्रतिष्ठा की गई है। 
‘‘निराला’’ की छायावादी रचनाएं - 
ण् 
अनामिका - 1923 
ण् परिमल - 1930 
ण् गीतिका - 1936 
ण् तुलसीदास 
अन्य रचनाएं - 
ण् कुकुरमुŸाा (षोषित-कुकुरमुŸाा, शोषक-गुलाब)ष् 
ण् बेला और नए पत्त े 
ण् अर्चना 
ण् सरोज स्मृति (हिन्दी साहित्य का प्रथम श्रेणी शोक गीत) 
ण् अराधना 
ण् अपरा 
ण् गीतगुंज 
ण् अणिमा 
ण् गर्म पकौड़ी 
ण् स्फटिक षिला 
ण् सांध्य सांकली (मृत्यु के बाद प्रकाषन हुआ) 
3. सुमित्रानन्दन पंत - जन्म - 1900 ई 
ण् 
इन्हे ं पकृ्र ति का सुकुमार कवि कहा जाता ह।ै 
ण् इन्होंने छायावादी काव्य की भाषा को संवारने का कार्य किया। 
ण् ‘पल्लव’ नामक रचना की भूमिका में इन्होंने भाषा अलंकार, छंद, 
शब्द-चयन पर विचार-व्यक्त किए। 
ण् इसलिए ‘पल्लव’ को छायावाद का ‘‘मिनिफेस्टो’’ कहा जाता है। 
ण् इनके काव्य मे ं मर्तू  क े लिए अमर्तू  उपमान देने की प्रवृति दिखाई 
देती है। 
ण् इनकी पहली कविता ‘‘गिरजे का घण्टा’’ है। 
छायावादी रचनाएं - 
ण् 
उच्छवास - 1920 प्रथम छायावादी रचना 
ण् ग्रंथि - 1920 
ण् वीणा - 1927 
ण् पल्लव - 1920 
ण् गुंजन - 1932 ( पंत की अंतिम छायावादी कृति) 
पंत की प्रगतिवादी काव्य रचनाएं - ग्राम्या, युगांत, युगवानी 
अरविंद दर्षन से प्रभावित काव्य - 
ण् स्वर्णकिरण 
ण् स्वर्ण धूलि 
ण् उŸारा 
ण् कला और बूढ़ा चांद 
ण् वाणी 
नवमानवतावादी काव्य - 
ण् लोकायतन 
ण् चिदम्बरा 
ण् पौ फटने से पहले 
ण् समाधिता 
काव्य नाटक - 
ण् रजत षिखर 
ण् षिल्पी 
ण् अतिमा 
ण् मधुबन 
ण् युग पुरूष 
ण् छाया 
ण् ज्योत्स्ना 
ण् मानसी 
ण् 
‘चिदम्बरा’ के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार 1968 में मिला। 
ण् ‘‘मौन निमंत्रण’’ कविता में रहस्यवादी प्रवृति है। 
ण् ‘‘परिर्वधन’’ कविता अत्यन्त मार्मिक एवं उच्चकोटि की दार्षनिक 
कविता है। 
ण् ‘‘आंसू की बालिका’’ एवं ‘‘पर्वत प्रदेष में पावस’’ कविताओं में प्रकृति 
का मनोहारी चित्रण है। प्रकृति का आलम्बन रूप में चित्रण किया। 
4. महादेवी वर्मा - जन्म - 1907 ई 
ण् 
इन्हें ‘‘आधुनिक मीरा’ कहा जाता है। 
ण् इन्होंने पहले ब्रज भाषा में लिखना शुरू किया तथा बाद में खड़ी 
बोली में रचना की। 
ण् ‘‘यामा’ में निहार, रष्मि, नीरजा, सांध्यगीत आदि रचनाओं का 
संकलन है। 
ण् इनके काव्य में विहर की प्रधानता है जो लौकिक न होकर अलौकिक 
है। 
ण् रहस्यवाद की प्रधानता भी उनके काव्य में मिलती है। 
प्रमुख काव्य रचनाएं - 
ण् 
निहार - 1930 
ण् रष्मि - 1932 
ण् नीरजा - 1935 
ण् सांध्यगीत - 1936 
ण् यामा - 1940 
‘‘यामा’’ के लिए ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ - 1982 ई. (18वां) 
उŸारछायावादी काव्य - 
ण् 
छायावाद एवं प्रगतिवाद के बीच की कविताएं इस वर्ग में आती है। 
इसे दो भागों में बांटा जा सकता है - 
1. राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा - 
(
प्) माखन लाला चतुर्वेदी 
(प्प्) बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ - 
ण् इन्होंने ‘प्रभा एंव प्रताप’ नामक पत्रों का सम्पादन कार्य किया। 
प्रमुख रचनाएं - 
ण् कुंकुम 
ण् उर्मिला - भारतीय आर्य संस्कृति के उज्जवल रूप का चित्रण 
ण् अपलक 
ण् कवास े 
ण् हम विषपायी जन्म क े 
ण् विनोवासतवन 
(प्प्प्) सुभ्रदा कुमारी चैहान - जन्म 1905 
ण् इनकी कविताएं ‘त्रिधारा’ एंव ‘मुकुल’ में संकलित है। 
ण् इनकी कविता ‘झांसी की रानी’ जनसामान्य में बहुत प्रसिद्ध हुई एवं 
‘वीरों का कैसा हो वंसत’ कविता की काफी चर्चित रही। 
(प्ट) रामनरेष त्रिपाठी 
(ट) रामधारी सिंह ‘दिनकर’ 
(टप्) सियारामषरण गुप्त 
2. प्रणयमूल वैक्तिक काव्यधारा: 
ण् इस धारा के अन्दर प्रेम और मस्ती की कविताएं लिखी गई। 
(
प्) हरिवंष राय बच्चन - जन्म 1907 
ण् इनका ‘मधुकाव्य’ जनता में अत्याधिक लोकप्रिय हुआ। 
ण् इनके काव्य पर ‘उमर खैयाम’ की रूबाइयों का काफी प्रभाव पड़ा। 
(प्प्) रामेष्वर शुक्ल ‘अचंल’ - 
ण् इनके काव्य में शारीरिक प्रेम की प्रधानता है। 
प्रमुख रचनाएं - 
ण् मधुलिका 
ण् अपराजिता 
ण् करील 
ण् किरण-वेला 
ण् लाल चुनर 
ण् विराम चिन्ह 
ण् वर्षान्त के बादल 
(प्प्प्) नरेन्द्र शर्मा - 
प्रमुख रचनाएं - 
ण् प्रभात फेरी 
ण् प्रवासी के गीत 
ण् पलास वन 
ण् शूल-फूल 
ण् द्रौपदी 
ण् सुवणी 
ण् रक्त चंदन 
ण् कदलीवन 
ण् प्यासा निर्झर 
‘‘प्रगतिवाद’’ 
समयावधि - 1936-194र्3 इ. 
जो विचारधारा राजनैतिक क्षेत्र में साम्यवाद या माक्र्सवाद कहलाती है 
वहीं साहित्यिक क्षेत्र में प्रगतिवाद के नाम से जानी जाती है। अतः 
साम्यवादी विचारधारा के अनुरूप लिखी गई कविता प्रगतिवादी कविता 
है। 
प्रगतिवाद की प्रमुख विषेषताएं - 
ण् शोषितों की दीनता का चित्रण। 
ण् शोषक वर्ग की प्रति घृणा 
ण् धर्म व ईष्वर के प्रति अनास्था 
ण् क्रांति की भावना। 
ण् नारी-चित्रण (दलित अवस्था का) 
ण् सामाजिक जीवन का यर्थाथ-चित्रण 
ण् 
भारत मे ं ‘सज्जाद’ ‘जहीर’ एव ं मुलकराज आनदं ने सन् 193र्6 इ. में 
‘प्रगतिषील लेखक संघ’ की स्थापना की। इसका प्रथम अधिवेषन 
लखनऊ में प्रेमचन्द की अध्यक्षता में हुआ। वहां प्रेमचन्द ने कहा कि 
‘‘साहित्य का उद्देष्य दबे-कुचले हुए वर्ग की मुक्ति का होना 
चाहिए।’’ 
ण् सामाजिक यथार्थ एवं वर्ग संघर्ष के कारण प्रगतिवादी कविता में 
कला पक्ष की उपेक्षा हुई है। 
ण् प्रगतिवाद की स्थापना में ‘निराला’ एवं ‘पंत’ का भी महत्वपूर्ण 
योगदान रहा है। 
प्रमुख कवि - 
1. नागार्जुन - जन्म 1911 मूलनाम - वैद्यनाथ मिश्र 
ण् 
इन्होंने मैथिली भाषा में ‘यात्री’ नाम से कविताएं लिखी। 
ण् बौद्ध धर्म में दीक्षा लेकर नागार्जुन नाम ग्रहण किया। 
ण् इन्होंने ‘‘दीपक’’ पत्रिका का सम्पदान किया। 
प्रमुख रचनाएं - 
ण् 
युगधारा 
ण् संतरंगे पंखो वाली 
ण् प्यासी पथराई आंख ें 
ण् तुमने कहा था 
ण् भष्माकुंर 
प्रमुख उपन्यास - 
ण् 
रतिनाथ की चाची 
ण् बलचनमा 
ण् वरूण के बेट े 
ण् दुःख मोचन 
ण् कुम्भीपाक 
प्रसिद्ध कविताएं - 
ण् प्रेत का बयान 
ण् काली माई 
ण् अकाल और उसके बाद 
ण् आओ रानी हम ढोएं पालकी 
ण् वे और तुम 
ण् पाषाणी 
ण् सिन्दुर तिलान्कित झील 
अन्य काव्य सग्रंह - 
ण् ऐसे भी हम क्या, ऐसे भी तुम क्या 
ण् खीचड़ी विपल्लव 
ण् देखा हमने 
ण् हजार-हजार बाहों वाली 
ण् पुरानी जुतियो का कोरस 
ण् रत्नगर्भ 
ण् ऐसा भी क्या कह यिा मैंने 
2. केदारनाथ अग्रवाल - जन्म 1911 
ण् ये प्रगतिवाद के सषक्त कवि थे तथा पेषे से वकील थे 
प्रमुख रचनाएं - 
ण् फूल नहीं रंग बोलते ह ंै 
ण् युग की गंगा 
ण् नींद के बादल 
ण् आग का आईना 
ण् अपूर्वा 
ण् समय-समय पर 
ण् पंख और पतवार 
ण् गुलमेंहदी 
‘मांझीन बजाओ बंषी’ एवं ‘बसन्ती हवा’ इनकी प्रसिद्ध कविताएं है जो 
‘फूल नहीं रंग बोलते हैं’ काव्य संग्रह मंे संग्रहित है। 
3. षिवमंगल सिंह सुमन - 
प्रमुख रचनाएं - 
ण् मिट्टी की बारात 
ण् वाणी की व्यथा 
ण् हिल्लौल 
ण् जीवन के गान 
ण् प्रलय सृजन 
ण् विष्वास बढ़ता ही गया 
ण् पर आंखें नहीं भरी 
ण् एषिया जाग उठा ह ै 
4. रांगेय राघव - 
रचनाएं - 
ण् 
अजेय खण्डर 
ण् मेधावी 
ण् पांचाली 
ण् पिघलते पत्थर 
ण् राह के दीपक 
5. त्रिलोचन - 
ण् 
मूल नाम - वासुदेव सिंह जन्म - 1917 में 
ण् इनकी कविताओं में धरती की सौंधी महक तथा भावुकता का 
समावेष है। 
रचनाएं - 
ण् धरती 
ण् म ंै उस जनपथ का कवि ह ंू 
ण् गुलाब और बुलबुल 
ण् ताप के तापे हुए दिन 
ण् सबद 
ण् दिगन्त 
ण् मिट्टी की बारात 
महत्वपूर्ण पंक्तियां - प्रगतिवाद 
ण् ‘‘तुम वहन कर सको जन-जन में मेरे विचार वाणी मेरी चाहिए तुम्हें 
क्या अलंकार’’ - पंत 
ण् ‘‘वह तोड़ती है पत्थर देखा उसे मैंने इलाहाबाद के तट पर’’ 
-निराला 
ण् ‘‘कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल-पुथल मच जाए’’ - 
बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ 
ण् ‘‘ष्वानों को मिलता दूध अधिक, भूखे बालक अकुलाते हैं।’’-दिनकर 
ण् ‘‘भाग्यवाद आवरण पाप का और शस्त्र शोषण का, जिससे दबा एक 
जन भाग दूसरे जन का’’ - दिनकर 
‘‘प्रयोगवाद’’ 
समयावधि - 1943-1953 ई. 
ण् हिन्दी काव्य में प्रयोगवाद का प्रारम्भ सन् 1943 में अज्ञेय द्वारा 
सम्पादित ‘‘तार सप्तक’’ के प्रकाषन से माना जाता है। 
ण् इन कविताओं मं े जो नवीन प्रयोग हुए उनकी विकसित अवस्था ही 
नई कविता है। 
ण् इस काल की कविताएं, नई संवेदनाओं, नए भाव-बोध एंव नए षिल्प 
से युक्त है। 
प्रमुख कवि - 
1. अज्ञेय - जन्म 1911 
ण् इन्होंने ‘‘दिनमान’’ एंव ‘‘प्रतिक’’ का सम्पादन कार्य किया। 
प्रमुख रचनाएं - 
ण् हरी घास पर क्षर भर। 
ण् बावरा अहेरी 
ण् इन्द्रधनुष रोवे हुए थ े 
ण् अरि ओ करूणा प्रभामय 
ण् आंगन के पार द्वार 
ण् कितनी नावों में कितनी बार 
ण् सागर मुद्रा 
ण् महावृक्ष के नीचे 
ण् क्योंकि में उसे जानता हूँ 
ण् नदी की बांग पर छाया 
ण् चिन्ता 
ण् इत्यलम 
ण् भग्नदूत 
ण् पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ 
ण् 
इन्होंने प्रथम ‘तार सप्तक’ ‘दूसरा सप्तक’ ‘तीसरा सप्तक’ और 
‘रूपाम्बर’ का संपादन कार्य किया 
ण् ‘भग्नदूत’ और ‘चिन्ता’ छायावादी कविताओं में आती है। 
ण् ‘इत्यलम्’ इनकी नई भावबोध की रचनाओं का संकलन है। 
ण् ‘विषाल भारत’ तथा ‘सैनिक’ का संपादन कार्य भी किया। 
ण् कुछ विद्वान इन्हें प्रयोगवाद का जनक मानते हैं। 
2. गिरिजा कुमार माथुर - ‘गंगनांचल’ के संपादक है। 
प्रमुख रचनाएं - 
ण् मंजीर 
ण् नाष और निर्माण 
ण् धूप के धान 
ण् भीतरी नहीं की यात्रा 
ण् छाया मत छूना 
ण् षिलापंख चमकीले 
ण् मषीन का पुर्जा 
ण् मैं वक्त के हूं सामने 
ण् पृथ्वी कल्प 
ण् कल्पान्तर 
ण् साक्षी रहे वर्तमान 
3. गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ - 
रचनाएं - चांद का मुंह टेढ़ा है, भूरी-भूरी खाक धूल 
ण् 
अंधेरे में तथा ‘ब्रह्मराक्षस’ इनकी फैन्टैसी (जादुई कला) पर आधारित 
कविताएं है। 
ण् ‘चम्बल की घाटी’ इनकी प्रसिद्ध कविता है। 
ण् ‘विपात्र’ एवं ‘सतह से उठता आदमी’ इनके कहानी संग्रह है। 
ण् ‘कामायनी’ एक पुनर्विचार एवं ‘तार सप्तक’ के कवि इनकी प्रमुख 
आलोचना है। 
4. भवानी प्रसाद मिश्र - 
ण् इन्होंने ‘‘गांधी वांग्मय’’ एंव ‘‘कल्पना’’ पत्रिका का संपादन किया। 
ण् इनकी कविता ‘गीत फरोस’ काफी प्रसिद्ध है। 
ण् इन्होंने गीतकार के रूप में भी कार्य किया। 
प्रमुख रचनाएं - 
ण् 
बुनी हुई रस्सी 
ण् कमल के फूल 
ण् पाणी की दीनता 
ण् टूटने का सुख 
ण् सतपुड़ा के जंगल 
ण् चकित है दुःख 
ण् इद्म न मम 
ण् शतदल 
ण् अनाम तुम आते हो 
5. धर्मवीर भारती - 
ण् 
ये ‘परिमल’ नामक साहित्यिक संस्था के संस्थापक मण्डल में शामिल 
थे 
ण् ‘गुनाहों का देवता’ व ‘अंधायुग’ इनकी प्रसिद्ध रचनाएं है। 
ण् इन्होंने ‘धर्मयुग’ ‘निकस’ ‘आलोचना’ आदि पत्रिकाओं का संपादन 
किया। 
प्रमुख काव्य संग्रह - 
ण् अंधायुग (कृष्ण को नए रूप में प्रतिष्ठा मिली) 
ण् कनुप्रिया 
ण् ठण्डा लोहा 
ण् सात गीत वर्ष  
ण् देषान्तर 
प्रमुख उपन्यास - 
ण् गुनाहों का देवता 
ण् सूरज का सांतवा घोड़ा 
कहानी संग्रह - 
ण् बंद गली का आखरी मकान 
ण् चांद ओर टूटे हुए लोग 

िनबंध एंव समीक्षा - 
ण् 
ठेले पर हिमालय 
ण् मानव मूल्य और साहित्य 
ण् सिद्ध साहित्य 
ण् कहानी-अनकहानी 
ण् पष्यन्ती 
ण् प्रगतिवाद एक समीक्षा 
6. शमषेर बहादुर सिंह - 
ण् 
‘कहानी’ आरै ‘नया साहित्य’ के सपं ादक मण्डल म ें शामिल रहे। 
ण् ‘अतिष्य व्यक्तिवादिता’ एवं ‘कुण्ठित प्रेम’ इनकी कविताओं का प्रमुख 
स्वर है। 
प्रमुख काव्य कृतियां - 
ण् 
चकू ा भी नहीं हूं म ंै 
ण् इतने पास अपने 
ण् काल तुमसे होड़ मेरी 
ण् बात बोले भी हम नहीं 
ण् अमन का राग 
ण् उदीता 
7. कुंवर नारायण - 
ण् इनकी प्रसिद्ध रचना ‘आत्मजयी’ नामक कृति कठोपनिषद के 
नचिकेता प्रसंग पर आधारित है। 
प्रमुख काव्य कृतियां - 
ण् चक्रव्यूह 
ण् परिवेष-हमतुम 
ण् आमने-सामने 
ण् कोई दूसरा नहीं 
8. सर्वेष्वरदयाल सक्सेना - 
प्रमुख काव्य कृतियां - 
ण् काठ की घंटिया ं 
ण् बांस का पुल 
ण् एक सूनी नाव 
ण् गर्म हवाएं 
ण् कुआनों नही 
ण् जंगल का दर्द 
ण् खूंटियों पर टंगे लोग 
ण् इनका ‘बकरी’ नामक नाटक काफी प्रसिद्ध रहा। 
ण् इन्होंने दिनमान, पराग, प्रतीक, नई कविता आदि का संपादन का 
कार्य किया। 
9. नरेष मेहता - 
ण् ‘संषय की एक रात’ नामक खण्डकाव्य में राम के संषय का चित्रण 
है। 
ण् ‘प्रार्थना पुरूष’ नामक खण्डकाव्य में गांधी जी के जीवन का चित्रण 
है। 
प्रमुख काव्य कृतियां - 
ण् वनपांखी सुनो। 
ण् बोलने दो चीड़ का े 
ण् पिछले दिनों नंगे पैरों 
ण् मेरा समर्पित एकान्त 
ण् उत्सव 
ण् तुम मेरा मौन हो 
ण् आखिर समुद्र से तात्पर्य  
ण् देखना एक दिन 
ण् शबरी 
ण् अरण्या 
10. रघुवीर सहाय - 
ण् सीढि़यों पर धूप में 
ण् लोग भूल गए 
ण् आत्महत्यारे के विरूद्ध 
11. चन्द्रकान्त देवताले - 
- दिवारों पर खून से 
12. ऋतुराज - 
- अंगीरस 
13. विजयदेवनारायण साही - 
- मछलीघर 
14. धूमिल - 
संसद से सड़क तक 
15. रामदरष मिश्र - 
ण् बेरंग बेनाम चिठ्ठिया ं 
ण् पक गई है धूप 
16. प्रभाकर माचवे - 
ण् अनुक्षण 
ण् स्वप्न भंग 
17. भारतभूषण अग्रवाल - 
ण् ओ अप्रस्तुत मन 
सप्तक के कवि - 
पहला/तार सप्तक (1943) - 
नेमिचन्द जैन, गजानन माधव मुक्तिबोध, भारतभुषण अग्रवाल, 
प्रभाकर माचवे, गिरिजा कुमारी माथुर, रामविलास शर्मा, अज्ञेय 
दूसरा सप्तक (1943) - 
भवानी प्रसाद मिश्र, शकुन्तला माथुर हरिनारायण व्यास, शमषेर 
बहादुर सिंह, नरेष मेहता, रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती। 
तीसरा सप्तक (1943) - 
प्रयाग नारायण त्रिपाठी, कुंवर नारायण, कीर्ति चैधरी, 
केदारनाथ सिंह, मदन वातस्यायन, विजयदेव नारायण साही, सर्वेष्वर 
दयाल सक्सने ा 
ण् ताार सप्तक प्रयोगवाद तथा दूसरा व तीसरा सप्तक नई कविता के 
अन्तर्गत है। 
‘‘हिन्दी साहित्य की गद्य विधाएं’’ 

िहन्दी उपन्यास - 
ण् 
गद्य विधाओं में उपन्यास सबसे रोचक विधा है। 
ण् हिन्दी उपन्यास के विकास का श्रेय अंग्रेजी व बांग्ला उपन्यासों को 
दिया जाता है। 
ण् हिन्दी की प्रथम मौलिक उपन्यास के सम्बन्ध में कुछ विद्वान ‘‘श्र 
द्धाराम फुल्लोरी’’ कृत ‘‘भाग्यवती’’ (1877) को तथा कुछ लोग 
‘‘लालश्री निवास दास’’ कृत ‘‘परीक्षागुरू’’ (1882) को हिन्दी का 
प्रथम मौलिक उपन्यास मानते हैं। निष्कर्ष रूप ‘‘परीक्षागुरू’’ही प्रथम 
हिन्दी उपन्यास माना जाता है। 
प्रेमचन्द पूर्व के उपन्यास - इस काल के उपन्यासों का मुख्य 
उद्देष्य मनोरंजन था। 
1. पं. बालकृष्ण भट्ट - इनके उपन्यासों में सुधारवादी एवं उपदेष 
मूलक स्वर विद्यमान है। 
प्रमुख उपन्यास - 
ण् रहस्यकथा 
ण् नूतन ब्रह्मचारी 
ण् सौ अनान एक सुजान 
2. ठाकुर जगमोहन सिंह - 
उपन्यास - 
श्यामा स्वपन - राधा-कृष्ण के प्रेम का चित्रण रीतिकालीन ढंग से 
3. लज्जाराम मेहता - 
उपन्यास - 
ण् धूर्त रसिककाल 
ण् आदर्ष हिन्द ू 
ण् बिगड़े का सुधार 
ण् स्वतंत्र रमा ओर परतंत्र लक्ष्मी 
4. राधाकृष्णदास - 
ण् निसहाय हिन्दी (1890) - गौवध की समस्या का निवारण 
5. बाबु देवकीनन्दन खत्री - 
ण् 
इन्होंने तिलिस्मी एवं ऐयारी उपन्यासों की रचना की 
ण् इनके उपन्यासों को पढ़ने के लिए बहुत से अहिन्दी भाषियों ने हिन्दी 
सीखी 
ण् चन्द्रकांता (1891) 
ण् चन्द्रकान्ता संतति 
ण् काजल की कोठरी 
ण् भूतनाथ 
6. गोपालराम गहमरी - इन्होंने जासूसी उपन्यासों का श्रीगणेष किया 
ण् 
सर कटी लाष (अद्भुत लाष) 
ण् जासूस की भूल 
ण् जासूस पर जासूसी 
ण् जासूस की ऐयारी 
ण् गुप्त भेद 
7. किषोरीलाल गोस्वामी - 
ण् जिन्दे की लाष 
ण् तिलस्मी शीषमहल 

logoblog

Thanks for reading हिन्दी साहित्य के विभिन्न काल खण्डों का वर्गीकरण

Previous
« Prev Post

No comments:

Post a Comment

jcp tutorial